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________________ भाषाटीकासमेतः। (३५) : इसी सत्त्वस्वरूप बुद्धिरूप गुहामें विकाररहित परम प्रकाश तेजःस्वरूप ईश्वर अकाशमें सूर्यके सदृश अपने तेजसे सकल विश्वको प्रकाश करताहुआ भासता है ॥ १३४॥ । ज्ञाता मनोऽहंकृतिविक्रियाणां देहेन्द्रियप्राणकतक्रियाणाम् । अयोऽग्निवत्तामनुवर्तमानो न चेष्टते नो विकरोति किञ्चन ॥ १३५ ॥ यह परमात्मा मन अहंकारके विकारके और देह इन्द्रिय प्राण इन सबकी की हुई क्रियाओंका ज्ञाताहै जैसे लोहाके संयोग होनेसे अग्नि लोहे की आकृतितुल्य दीखता है पर अनिका विकार नहीं होता तैसे आत्मा इन्द्रिय आदिके किये हुये कर्मका ज्ञाता है, परन्तु अपना न कोई चेष्टा करता है न कोई विकारको प्राप्त होताहै केवल साक्षति पसे स्थित रहता है ॥ १३५ ॥ न जायते नो म्रियते न वर्धते न क्षीयते नो विकरोति नित्यः । विलीयमानेऽपि वपुष्यमु. ष्मिन्न लीयते कुम्भ इवाम्बरं स्वयम् ॥ १३६॥ आत्मा न जन्मलेता है न मरता है न बढताहै न क्षीण होताहै न कभी विकारको प्राप्त होताहै नित्यहै कभी उसका नाश नहीं होता इस शरीरके नष्ट होनेपरभी आत्मा जैसाका तैसा वर्तमान रहताहै जैसे घटके नाश होनेपरभी घटके भीतरके आकाशका नाश नहीं होता तैसे आत्माका कभी नाश नहीं होना ॥ १३६ ॥ प्रकृतिविकृतिभिन्नः शुद्धसत्त्वस्वभावः सदसदिदमशेषं भासयनिर्विशेषः । विलसति परमात्मा जाग्रदादिष्ववस्थास्वहमहमिति साक्षात्साक्षिरूपेण बुद्धेः ॥ १३७ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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