________________
(३२) विवेकचूडामणिः। यया सदानन्दरसं समृच्छति ॥ १२१ ॥
आत्मस्वरूपका अनुभव होना परम शान्ति होना सदा तृप्त रहना आनन्द होना परमात्मामें श्रद्धा होना ये सब रजोगुणसे रहित केवल विशुद्ध सत्त्वगुणके धर्म हैं सत्त्वगुणके उदय होनेसे परमानन्दरस प्राप्त होता है ॥ १२१॥
अव्यक्तमेतत्रिगुणैर्निरुक्तं तत्कारणं नाम शरीरमात्मनः । सुषुप्तिरेतस्य विमुक्त्यवस्था प्रलीन सर्वेन्द्रियबुद्धिवृत्तिः ॥ १२२॥. सत्त्व रज तम इन तीनों गुणोंसे संयुक्त माया है इसका कारण आत्मशरीर है मायाके विभागके लिये सुषुप्ति अवस्था होती है जिस अवस्थामें सब इन्द्रियोंकी और बुद्धिकी वृत्ति नष्ट होजातीहै ॥१२२॥
सर्वप्रकारप्रमितिप्रशान्तिीजात्मनावस्थितिरेख बुद्धेः । सुषुप्तिरेतस्य किल प्रतीतिः किञ्चिन्न वेनीति जगत्प्रसिद्धेः ॥१२३॥ सुषुप्ति अवस्थामें सब प्रमितिका नाश होनेसे बीजरूप केवल .. बुद्धिकी स्थिति रहती है बीजरूपसे बुद्धिके स्थिर रहनेमें प्रमाण यही है कि सुखसे में सोया था मुझे कुछ मालूम नहीं हुआ ऐसा जागनेंपर अनुभव होता है ॥ १२३ ॥
देहेन्द्रियप्राणमनोहमादयःसर्वे विकारा विषयाः सुखादयः । व्योमादिभूतान्यखिलं च विश्वमव्यक्तपर्यन्तमिदं ह्यनात्मा ॥ १२४ ॥ देह, इन्द्रिय, मन, प्राण, अहंकारक, आदि सब विकार सुख दुःख आदि सब विषय आकाश आदि पञ्चभूत अखिल संसार मायापर्यन्त ये सब आत्मासे भिन्न अनात्मवस्तु हैं ॥ १२४ ॥