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________________ (३०) विवेकचूडामणिः । स्मादेषा तद्रजो बन्धहेतुः ॥११४॥ ... काम क्रोध लोभ दम्भ ईर्ष्या असूया अहंकार ये सब रजोगुणके घोर धर्म हैं । जिनके वश होनेसे पुरुषकी प्रवृत्ति विषयोंमें होती है इसलिये रजोगुण बन्धका कारण है ॥ ११४ ॥ एषा वृत्तिर्नाम तमोगुणस्य शक्तिर्यया वस्त्ववभा. सतेऽन्यथा । सैषा निदानं पुरुषस्य संसृतेर्विक्षेपशक्तिः प्रसरस्य हेतुः॥ ११५ ॥ तमोगुणका अंश मायाकी दूसरी शक्तिका नाम आवरणशक्ति है जिससे वस्तुओंका यथार्थरूप नहीं दीख पडता पश्चात् विक्षेपशक्ति होनेसे उसी वस्तुमें दूसरे वस्तुका भान होता है। इसलिये पुरुषका संसार सम्भावना होनेमें मायाकी जो विक्षपशक्ति है वही कारण है ॥११५ ॥ प्रज्ञावानपि पण्डितोऽपि चतुरोप्यत्यन्तसूक्ष्मात्मदृग्व्यालीढस्तमसा न वेत्ति बहुधा संबोधितोपि स्फुटम्।भ्रान्त्यारोपितमेव साधु कलयत्यालम्बते तद्गुणान्हन्तासौ प्रबला दुरन्ततमसः शक्तिर्महत्या वृतिः ॥ ११६ ॥ बडे खेदकी बात है कि, तमोगुणका अंश मायाकी विक्षेपशक्तिके प्रादुर्भाव होनेसे पढेहुए बुद्धिमान् पण्डित बहुत चतुर सूक्ष्मदृष्टि पुरुषको भलीभांति कोई वस्तु समझायाजाय तौभी उस वस्तुको न समझकर भ्रांतिसे उसी वस्तु में दूसरे वस्तुका आरोप करता है और उसी दूसरी वस्तुको दृढ अवलम्बन करता है । धन्य यह तमोगुणकी आवरण शक्तिका महिमा है ॥ ११६ ॥ अभावना वा विपरीतभावना संभावना विप्रतिपत्तिरस्याः । संसर्गयुक्तं न विमुञ्चति ध्रुवं
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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