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भाषाटीकासमेतः।
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इस. मायाको सत्यभी नहीं कहसकते क्योंकि अद्वैत प्रतिपादन करनेवाली बहुतसी श्रुतियां विरोध करती हैं मिथ्याभी नहीं कहसकते क्योंकि इस मायाका कार्य प्रत्यक्ष दीखता है अंगसहित अथवा अङ्गसे रहितभी नहीं कहसकते यह अद्भुत अनिर्वचनीय रूप माया
शुद्धाऽद्वयब्रह्मविबोधनाश्या सर्पभ्रमो रज्जुविवेकतो यथा । रजस्तमःसत्त्वमिति प्रसिद्धा गुणास्तदीयाः प्रथितैः स्वकाय्यः ॥ ११२॥ शुद्ध अद्वितीय ब्रह्मका बोध होनेपर इस मायाका नाश होता है जैसे रज्जुस्वरूपका यथार्थ ज्ञान होनेपर सर्पका भ्रम नष्ट होजाता है इस मायाके सत्त्व रज तम ये तीन गुण हैं अपने २. कार्यसे प्रसिद्ध हैं जैसे जिस समय प्रसन्न चित्त होजावे और भूली हुई बातोंका स्मरण होनेलगे तो समझना कि, सत्वगुणका उदय है । जिस समय चित्त चंचल होजावे और कोई वस्तुपर स्थिर न रहै तो समझना कि, इस समयपर रजोगुणका उदय है । और आलस्य निद्रादि दोषोंसे बातोंके भूल जानेसे तमोगुणका उदय जानना ॥ ११२ ॥
विक्षेपशक्ती रजसः क्रियात्मिका यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी। रागादयोऽस्याः प्रभवन्ति नित्यं दुःखादयो ये मनसो विकाराः ॥ ११३॥ रजोगुणका अंश मायाकी एक विक्षेपशक्ति है, जिससे वह माया सब क्रियाओंमें मनुष्योंको प्रवृत्त कराती है और राग दुःख आदि जितने मनके विकार हैं सो ये सब विक्षेपशक्तिहीसे प्रबल होते
कामः क्रोधो लोभदम्भाद्यसूयाऽहंकारामत्सराधास्तु घोराः । धर्मा एते राजसा पुंप्रवृत्तिर्य