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________________ (२८) विवेकचूडामणिः । अहंकार सत्त्वगुण तमोगुण और रजोगुणके योगसे जाग्रत् स्वप्न और सुषुप्ति इन तीन अवस्थाओंको भोगता है ॥ १०७॥ आत्मार्थत्वेन हि प्रेयान् विषयो न स्वतः प्रियः । स्वत एव हि सर्वेषामात्मा प्रियतमो यतः॥१०८॥ विषयमें आत्मबुद्धि होनेसे विषयप्रिय होता है स्वतः विषयप्रिय नहीं है किन्तु विनाकारण सभीका परम प्रिय केवल आत्मा है दूसरा नहीं ॥ १०८॥ तत आत्मा सदानन्दो नास्य दुःखं कदाचन । यत्सुषुप्तौ निर्विषय आत्मानन्दोनुभूयते । श्रुतिः __"प्रत्यक्षमैतिामनुमानं च जाग्रति" ॥ १०९ ॥ इस कारण आत्मा सदा आनन्दस्वरूप है आत्माको कभी दुःख नहीं होता सुषुप्तिकालमें जो सुखविशेषका अनुभव होता है वही आत्मानन्द है। ऐसेही श्रुति 'प्रत्यक्ष ऐतिह्य इतिहास अनुमान आदिसे प्रतीत होता है' ॥१०९ अव्यक्तनानी परमेशशक्तिरनायविद्या त्रिगुणात्मिका परा । कार्यानुमेया सुधियैव माया यया जगत्सर्वमिदं प्रसूयते ॥ ११० ॥ ईश्वरकी जो शक्ति है उसीको माया कहते हैं जिसका नाम अनादि अविद्या त्रिगुणात्मिका अव्यक्त ये सब प्रसिद्ध हैं इस मायाका अनुमान कार्यसे होता है जिससे सम्पूर्ण दृश्य जगत उत्पन्न हुआ है ॥ ११०॥ सन्नाप्यसनाप्युभयात्मिका नो भिन्नाप्यभिन्नाऽप्युभयात्मिकानो। सांगाऽप्यनंगा [भयात्मिका नो महाद्भुता निर्वचनीयरूपा ॥ १११ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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