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________________ भाषाकासमेतः । महामृत्युर्मुमुक्षोर्वपुरादिषु । मोह एव मोहो विनिर्जितो येन स मुक्तिपदमर्हति ॥ ८७ ॥ मोक्षार्थी पुरुषका अपने शरीरमें मोह होना यही महामृत्यु है, जिसने मोहको जीत लिया वही पुरुष मोक्षपदके योग्य है ॥ ८७ ॥ मोहं जहि महामृत्युं देहदारसुतादिषु । यं जित्वा मुनयो यान्ति तद्विष्णोः परमं पदम् ॥ ८८ ॥ अपने देहका तथा पुत्र कलत्र आदिका मोहरूप महामृत्युको त्याग करो जिसको जीतने से मुनिलोग साक्षात् विष्णुपदको प्राप्त होते हैं ॥ ८८ ॥ त्वङ्मांसरुधिरस्स्रायुमेदोमज्जास्थिसंकुलम् | पूर्णं मूत्रपुरीषाभ्यां स्थूलं निन्द्यमिदं वपुः ॥ ८९ ॥ त्वचा, मांस, रुधिर, स्नायु, मज्जा, अस्थि इन सबसे संयुक्त और मलमूत्र से भरा हुआ यह स्थूल शरीर सर्वथा निन्द्य है ॥ ८९ ॥ पञ्चीकृतेभ्यो भूतेभ्यः स्थूलेभ्यः पूर्वकर्मणा । समुत्पन्नमिदं स्थूलं भोगायतनमात्मनः ॥ अवस्थाजागरस्तस्य स्थूलार्थानुभवो यतः ॥ ९० ॥ परस्पर मिला हुआ आकाश आदि पञ्चतत्त्वसे आत्माके भोगस्थान यह स्थूल शरीर उत्पन्न होता है इस स्थूल शरीरका स्थूल वस्तुओंका अनुभव करनेवाली जाग्रत अवस्था होती है ॥ ९० ॥ बाह्येन्द्रियैः स्थूलपदार्थ सेवां स्रक्चन्दनरूयादिविचित्ररूपाम् । करोति जीवः स्वयमेतदात्मना तस्मात्प्रशस्तिर्वपुषोऽस्य जागरे ॥ ९१ ॥ श्रोत्र आदि बाह्य इन्द्रियोंसे स्रक् चन्दन मनोज्ञ स्त्री आदि स्थूल पदार्थों का सेवन तद्रूपहोकर जीवात्मा करता है इस वास्ते इस स्थूल शरीरकी जाग्रत अवस्था प्रसिद्ध है ।। ९९ ।। (२३)
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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