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(२०) विवेकचूडामणिः।
यंते बुधैः । नभो नभस्वदहनाम्बुभूमयः सूक्ष्माणि भूतानि भवन्ति तानि ॥ ७५ ॥ अहंकार ममतासे प्रसिद्ध मोहका स्थान यह स्थूल शरीर कहा जाता है आकाश वायु अग्नि जल पृथिवी ये पांच सूक्ष्म भूत कहे जाते हैं। ७५ ॥
परस्परांशैमिलितानि भूत्वा स्थूलानि च स्थूलशरीरहेतवः । मात्रास्तदीया विषयाभवन्ति
शब्दादयः पञ्च सुखाय भोक्तुः ॥ ७६ ।। - आकाश आदि पांच तत्त्व अपने २ अंशसे इकटे होकर स्थूल शरीरका कारण होते हैं तथा आकाश वायु तेज जल पृथिवी पञ्च पृथिवी पञ्च तत्त्वोंकी सूक्ष्म मात्राका नाम शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध है ये सब भोक्ता पुरुषके सुखक साधन क्रमसे श्रोत्र, त्वक्, चक्षु, जिह्वा, घ्राण इन पांचों ज्ञानेंद्रियोंका विषय कहे जाते हैं ॥ ७६ ॥
य एषु मूढा विषयेषु बद्धा रागेण पाशेन सुदुर्मदेन । आयान्ति निर्यान्त्यधऊर्द्धमुच्चैः स्वकर्मदूतेन जवेन नीताः ॥ ७॥ जो मूढ जन शब्द स्पर्श रूप रस गन्ध इन पांचो विषयोंका प्रबल प्राति रूप पाशमें फँसि जाते हैं वेही मनुष्य अपना कर्मरूप दूतके वेगमें प्राप्त होकर इस लोकमें और पर लोकमें आते जाते हैं ॥ ७ ॥
शब्दादिभिः पञ्चभिरेव पञ्च पञ्चत्वमापुः स्वगुणेन बद्धाः। कुरङ्गमातङ्गपतङ्गमीनभृङ्गा नराः पञ्चभिरश्चितः किम् ॥ ७८॥ शब्द स्पर्श रूप रस गन्ध इन पांच विषयोंमेंसे एकएक विषयसे स्नेह करनेसे मृग हाथी फिलँगा मछली भ्रमर ये पांचों मारे जाते हैं