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________________ भाषाटीकांसमेतः । ( १९ ) अनित्य वस्तुओं में अत्यन्त वैराग्य होना यह मोक्षका प्रथम कारण है पश्चात् विषयोंसे इन्द्रियोंका निग्रह करना दूसरा कारण है तीसरा दम चौथा शीत उष्ण सुख दुःख आदिको सहलेना पांचवां सब काम्य कर्मका त्याग करना ॥ ७१ ॥ ततः श्रुतिस्तन्मननं सतत्त्वध्यानं चिरं नित्यनिरन्तरं मुनेः । ततो विकल्पं परमेत्य विद्वानिहैव निर्वाणसुखं समृच्छति ॥ ७२ ॥ कम त्याग करने के बाद गुरुमुखसे ब्रह्मविद्याको श्रवण करना पश्चात् आत्मवस्तुको अपने मनमें विचार करना इसके बाद उस रूप को निरंतर ध्यान करना ये सब जो मोक्षके साधन हैं इसके करने से निर्विकल्प पर ब्रह्मको पायके अधिकारी इसी देहसे ब्रह्मानन्द सुखको प्राप्त होता है ॥ ७२ ॥ यद्बोद्धव्यं तवेदानीमात्मानात्मविवेचनम् । तदुच्यते मया सम्यक्छ्रुत्वात्मन्यवधारय ॥ ७३ ॥ आत्म अनात्म वस्तुका विवेक जो तुम चाहतेहो समाचीन रीति से मैं कहता हूँ इसको समझकर आत्मस्वरूपमें तुम चित्तको स्थिर रक्खो ॥ ७३ ॥ मज्जास्थिमेदःपलरक्तचर्मत्वगाह्वयैधातुभिरभिरन्वितम् । पादोरुवक्षोभुजपृष्ठमस्त कैरंगैरुपांगेरुपयुक्तमेतत् ॥ ७४ ॥ मज्जा अस्थि मेद मांस रुधिर चर्म त्वचा ये सात धातुसे संयुक्त और पैर जङ्घा भुजा वक्षस्थल पृष्ठ मस्तक ये सब अंग उपांग संयुक्त ॥ ७४ ॥ अहंममेति प्रथितं शरीरं मोहास्पदं स्थूलमिती .
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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