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________________ भाषाटीकासमेतः । ( १७ ) अज्ञान रूप महासर्प से ग्रस्त मनुष्योंको मुक्त होनेमें ब्रह्मज्ञानही परम औषध है इसको बिना वेद शास्त्र मन्त्र यन्त्र इन सबसे कुछ फल नहीं होता ॥ ६३ ॥ न गच्छति विना पानं व्याधिरौषधशब्दतः । विना परोक्षानुभवं ब्रह्मशब्दैर्न मुच्यते ॥ ६४ ॥ जैसे रोगी पुरुषोंका रोग केवल औषधके नाम सुन लेनेसे दूर नहीं होता किन्तु औषध पीनेसे दूर होता है तैसे देह बन्धसे मुक्त होने में एक परोक्ष ब्रह्मका अनुभव करना यही परम उपाय है ॥ ६४ ॥ अकृत्वा दृश्यविलयमज्ञात्वा तत्त्वमात्मनः । बाह्यशब्दैः कुतो मुक्तिरुक्तिमात्रफलैर्नृणाम् ॥ ६५ ॥ स्थूल देह आदि जड़ समूहको ब्रह्मज्ञानसे नाश किये विना आत्मतत्त्व समझे बिना बोलनेके लिये जो बाह्य शब्द है उसके जानने से विना मोक्ष नहीं होगा ॥ ६५ ॥ अकृत्वा शत्रुसंहारमगत्वाऽखिलभूश्रियम् । राजाहमिति शब्दान्नो राजा भवितुमर्हति ॥ ६६ ॥ सब शत्रुओं नाश किये विना और भूमण्डलके राज्यभोग किये विना हम राजा हैं ऐसा कहनेसे जैसे कोई राजा नहीं होता तैसे आत्म तत्त्वके जाने विना मैं ब्रह्म हूँ ऐसा कहने से ब्रह्मज्ञान नहीं होता ॥ ६६ ॥ आप्तोक्तिं खननं तथोपरि शिलाद्युत्कर्षणं स्वीकृत निःक्षेपः समपेक्षते न हि बहिः शब्देस्तु निर्गच्छति ॥ तद्वद्ब्रह्मविदोपदेशमननध्यानादिभिर्लभ्यते मायाकार्य्यतिरोहितं स्वममलं तत्त्वं न दुर्युक्तिभिः ॥ ६७॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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