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________________ (१६) विवेकचूडामणिः। वीणायारूपसौन्दर्य तन्त्रीवौदनसौष्ठवम् । प्रजारञ्जनमात्रं तन्न साम्राज्याय कल्पते ॥१९॥ जैसे वीणाका जो सुन्दर रूप है तथा वीणाका जो मनोहर शब्द है सो केवल मनुष्योंको प्रसन्न करनेके लिये है इससे कोई राज्य प्राप्ति नहीं होती तैसे यज्ञ आदि कर्म करनेसे मोक्ष नहीं होता ॥ ५९ ॥ वाग्वैखरी शब्दझरी शास्त्रव्याख्यानकौशलम् । वैदुष्यं विदुषां तद्वद्भक्तये न तु मुक्तये ॥६॥ पण्डितोंकी वाक् विस्तार और शब्दकी चातुरी शास्त्रकी व्याख्या करना ये सब पण्डिताई केवल अपनी उदरपूर्तिके निमित्त हैं मोक्षके निमित्त नहीं होते ॥ ६ ॥ अविज्ञाते परे तत्त्वे शास्त्राधीतिस्तु निष्फला । विज्ञातेऽपि परे तत्त्वेशास्त्राधीतिस्तुनिष्फला॥६॥ जिन विद्वानोंको आत्मबोध नहीं हुआ उन लोगोंका शास्त्र पढना निष्फल है यदि · विना पढ़े दैवाधीनः ब्रह्मज्ञान हुआ तौभी पढना निष्फल है इससे स्पष्ट हुआ कि पढ़नेका मुख्य फल ब्रह्मज्ञानहीं है६१ शब्दजालं महाऽरण्यं चित्तभ्रमणकारणम् ॥ अतःप्रयत्नाज्ज्ञातव्यं तत्त्वज्ञास्तत्त्वमात्मनः ॥६२॥ शब्दसमूहरूप जो महा वन है सो चित्तमें भ्रम उत्पन्न होनेका कारण है कि शास्त्रोंमें अनेक प्रकारकी बातें लिखी हैं बुद्धिमानोंको ब्रह्मज्ञानी गुरुके पास जाकर आत्मविचारमें श्रम कर ऐसा विचार करना उचित है ॥ ६२॥ अज्ञानसर्पदष्टस्य ब्रह्मज्ञानौषधं विना । किमु वेदैश्च शास्त्रैश्च किमु मन्त्रैः किमौषधैः॥६३॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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