SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाषाटीकासमेतः । (१३) वेदान्त शास्त्रका अर्थ विचार करनेसे उत्तम आत्मज्ञान उत्पन्न होता है इसी ज्ञानसे निर्मूल दु:ख नष्ट होता है यही एक दुःख नाश होनेका परम उपाय है ॥ ४७ ॥ श्रद्धाभक्तिज्ञानयोगान्मुमुक्षोर्मुक्तेर्हेतून्वक्ति साक्षाच्छुतेगः । यो वा एतेष्ववतिष्ठत्यमुष्य मोक्षोऽविद्याकल्पिताद्देहबन्धात् ॥ ४८ ॥ मोक्षके विषय में साक्षात् श्रुति कहती है कि श्रद्धा भक्ति ध्यान योग ये सब मोक्षम कारण हैं इन सबको जो मनुष्य अनुष्ठान करता है वह अज्ञान कल्पित देह बन्धन से मुक्त होकर मोक्ष पदको पाता 1186 11 अज्ञानयोगात्परमात्मनस्ते ह्यनात्मबन्धस्तत एव संसृतिः । तयोर्विवेकोदितबोधवह्निरज्ञानकार्यं प्रदत्समूलम् ॥ ४९ ॥ तुम साक्षात् परब्रह्महो अज्ञानके संयोग होनेसे आत्मस्वरूपको भूलकर अनित्य वस्तुओं पर स्नेह करनेसे संसारी दुःखको भोगते हों जब आत्म अनात्म वस्तुका विचार करने से बोधरूप एक अग्नि उत्पन्न होगा तो वही अग्नि अज्ञानकल्पित संसारको समूल नाश करेगा ॥ ४९ ॥ शिष्य उवाच । कृपया श्रूयतां स्वामिन् प्रश्नोयं क्रियते मया । यदुत्तरमहं श्रुत्वा कृतार्थः स्यां भवन्मुखात् ॥ ५० ॥ शिष्य कहता है कि हे स्वामिन्! मैं आपसे एक प्रश्न करता हूँ कृपाकरि इस प्रश्नका उत्तर दीजिये इस प्रश्नका उत्तर आपके मुखारविन्दसे सुनकर मैं कृतार्थ हूंगा ॥ ५० ॥ को नाम बन्धः कथमेष आगतः कथं प्रतिष्ठास्य
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy