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________________ ( 152) विवेकचूडामणिः / आचार्य शिष्य का संवादके बहानेसे आत्मलक्षण निरूपण किया५७९ हितमिममुपदेशमाद्रियन्तां विहितनिरस्तसमस्त * चित्तदोषाः भवसुखविरतः प्रशान्तचित्ताःश्रुति रसिका यतयो मुमुक्षवो ये // 580 // जो यति पुरुष संसारी सुखसे वैराग्यको प्राप्त हुए और प्रशान्त चित्त हैं और श्रुतियोंमें श्रद्धालु होकर मोक्षकी इच्छा रखता है वह मुमुक्षुलोग समस्त चित्तदोषोंको त्याग कार अपने हितके लिये मेरे उपदेशको आदर करेंगे // 580 // संसाराध्वनि तापभानुकिरणप्रोद्भूतदाहव्यथाखिनानां जलकांक्षया मरुभुवि श्रांत्या परिभ्राम्यताम् / अत्यासन्नसुधाम्बुधिं सुखकरं ब्रह्माद्वयं दर्शयत्येषा शङ्करभारती विजयते निर्वाणसंदायिनी॥९८१ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य्यगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्य श्रीमच्छंकरभगवत्कृतो विवेकचूडामणिः समाप्त यह जो श्रीशंकराचार्य स्वामीकी ग्रन्थरूप वाणी है सो विजयको प्राप्त हुई कैसी यह ग्रन्थरूप वाणी है कि जो संसाररूप मार्गमें प्राप्त ताप और नाना क्लेशरूप सूर्यकी किरणोंसे दाह और व्यथा इन सबसे खेदको प्राप्त और ताप शान्तिके लिये जलकी इच्छासे निर्जल देशमें श्रान्त होकर परिभ्रमण करते हुए मनुष्योंको सुखका देनेवाला जो अद्वितीय ब्रह्मरूप अतिसन्निकट जो अमृतका समुद्र है उसको दिखाती है और परम मोक्षको देनेवाली है // 581 / / पञ्चेषुनवशीतांशुसम्मिते वैक्रमब्दके। वाक्यपुष्पावलिरियं शिवयोरर्पिता मया // 1 // इति श्रीमच्छपरामण्डलान्तर्गतरामपुरग्रामवास्तव्यपण्डितपृथ्वीदत्तपाण्डेयात्मज पण्डितचन्द्रशेखरशर्मविरचिता विवेकचूडामणि भाषाटीका समाप्ता / _ खेमराज श्रीकृष्णदास. "श्रीवेङ्कटेश्वर" स्टीम्-यन्त्रालय-बम्बई 0 / /
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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