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________________ भाषाटीकासमेतः। (१४३) क्षुधां देहव्या त्यक्त्वा बालः क्रीडति वस्तुनि । तथैव विद्वान् रमते निर्ममो निरहं सुखी ॥५३८ ॥ जैसे भूख व प्यास त्यागकर और देहकी व्यथाको भी छोडकर बालक क्रीडामें आसक्त रहता है तैसाही विद्वान् पुरुष ममता अहंकारको छोडकर सुखी हो विहार करता है ॥ ५३८ ॥ चिन्ताशून्यमदैन्यभक्ष्यमशनं पानं सरिद्वारिषु स्वान्तत्र्येण निरंकुशा स्थितिरभीनिद्रा श्मशाने बने ! वस्त्रं क्षालनशोषणादिरहितं दिग्वास्तुशय्या मही संचारो निगमान्तवीथिषु विदा क्रीडापरे ब्रह्मणि ॥ ५३९॥ ब्रह्मज्ञानीका स्वभाव वर्णनहै चिन्ता और दीनताको त्याग कर समयपर भिक्षा लेकर भोजन करना और नदियों में जल पीना स्वतन्त्र होकर जहां चित्त लगे वहां बैठना और भय से रहित होकर श्मशान भूमिमें चाहे वनमें निद्रा करना वस्त्र जो रहे उसको धोने सुखानेका यत्न न करना अथवा नंगे रहना भूमिको शय्या करलेना और वेद वेदान्तरूप वन वीथियोंमें भ्रमण करना और परब्रह्ममें क्रीडा करना इस रीतिसे आत्मज्ञानीको विहार करना चाहिये ॥ ५३९ ॥ विमानमालम्ब्य शरीरमेतद्भुनक्त्यशेषाविषयानुपस्थितान्। परेच्छया बालवदात्मवेत्ता योऽव्यतलिंगोऽननुसक्तबाह्यः ॥ ५४०॥ आत्मज्ञानी महात्मा पुरुष शरीररूप एक विमानके अवलम्ब करे विना यत्न उपस्थित संपूर्ण विषयोंको पराई इच्छासे भोग करते हैं जैसा बालक सब विषयोंको पराये कहने माफिक स्वीकार करलेते हैं परन्तु वह ज्ञानी पुरुष अपने स्वरूपको छिपाकर किसी बाह्य विषयोंमें अनुराग नहीं रखते ॥ ५४० ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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