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भाषाटीकासमेतः।
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बुद्धि आदि स्थूल देहपर्यन्त सब विश्व जिसमें मिथ्या आभासमात्र प्रतीत होता है वही आकाशसदृश व्यापक सूक्ष्म आदि अन्तसे रहित जो अद्वितीय ब्रह्म है वही मैं हूँ ॥ ५१३ ॥ सर्वाधारं सर्ववस्तुप्रकाशं सर्वाकारं सर्वगं सर्वशून्यम्।नित्यं शुद्धं निश्चलं निर्विकल्पं ब्रह्माद्वैतं यत्तदेवाहमस्मि ॥ ५१४॥ सबका आधार आर सब वस्तुओंका प्रकाशक सबका आकार और सबमें रहनेवाला सबसे शून्य नित्य शुद्ध निश्चल विकल्पसे रहित जो अद्वितीय ब्रह्म है सोई ब्रह्म मैं हूं ॥ ५१४ ॥
यत्प्रत्यस्ताशेषमायाविशेष प्रत्यग्रूपं प्रत्ययागम्यमानम् । सत्यज्ञानानन्तमानन्दरूपं ब्रह्माद्वैतं यत्तदेवाहमस्मि ॥ ५१५॥ जिसमें सम्पूर्णमायाका कार्य लयको प्राप्त होता है ऐसा जो व्यापकरूप प्रत्यक्ष प्रतीतिके अगोचर सत्य ज्ञान अनन्त आनन्द रूप अद्वितीय ब्रह्म है सोई ब्रह्म मैं हूं ऐसी ब्रह्मज्ञानीकी उक्ति है५१५
निष्क्रियोस्म्यविकारोऽस्मि निष्कलोऽस्मि निराकृतिः । निर्विकल्पोऽस्मि नित्योस्मि निरालम्बोस्मि निर्द्वयः ॥ ५१६॥ मैं क्रिया और विकारसे रहित हूं और कलासे आकृतिसे भी शून्य हूं विकल्पसे रहित और अवलम्बसे रहित अद्वितीय नित्य ब्रह्म मैं हूं ।। ५१६ ॥ सर्वात्मकोऽह सर्वोऽहं सर्वातीतोहमद्वयः। केवलाखण्डबोधोऽहंमानन्दोहं निरन्तरम् ॥५१७॥ सबका आत्मा मैं हूं और जो कुछ वस्तु है सो हमसे भिन्न नहीं