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________________ जीवन्मुक्त बोलते हबकालौल्यहै उसकारहित जलस्थ बपडनसे देह (१३६) विवेकचूडामणिः। जीवन्मुक्त बोलते हैं कि,बडे कष्टकी बाते हैं उपाधिके चञ्चल होनेसे औपाधिक जो प्रतिविम्बका लौल्यहै उसकी चञ्चलता मूढ मनुष्य आत्मामें मानते हैं जैसे जलके चञ्चलहोनेसे क्रिया रहित जलस्थ सूर्यके प्रतिबिम्बको चञ्चल मानते हैं तैसे देह आदिमें आत्माका प्रतिबिम्ब पडनेसे देह. का कर्तृत्व भोक्तृत्व धर्म आत्मामें जानते हैं इससे अधिक क्या कष्टहै ५०९ जले वापि स्थले वापि लुठत्वेष जडात्मकः। नाहं विलिप्ये तद्धमैर्घटधम्मैनेभो यथा ॥५१०॥ यह जो जडात्मक देह है सो जलमें गिरे चाहे पृथ्व में गिरे परन्तु इस देहके धर्मसे ब्रह्मरूप में लिप्त नहीं होता जैसे घटका मालिन्यादि धर्मसे आकाश लिप्त नहीं होता ॥ ५१० ॥ कर्तृत्वभोक्तृत्वखलत्वमत्तताजडत्वबद्धत्वविमुक्ततादयः । बुद्धेर्विकल्पा न तु सन्ति वस्तुतः स्वस्मिन्परे ब्रह्मणि केवलेऽद्वये ॥५११॥ कर्तृत्व भोक्तृत्व कुटिलता उन्मत्तता जडता बन्ध मोक्ष आदि ये सब बुद्धिके विकल्प हैं किन्तु अद्वितीय केवल परब्रह्मस्वरूप हमारेमें ये कोई धर्म नहीं रहते ॥ ५११॥ सन्तु विकाराः प्रकृतेदेशधा शतधा सहस्रधा वापि । किं मेऽसङ्गचितस्तैर्न धनः क्वचिदम्बरं स्पृशति५१२ जीवन्मुक्त पुरुष कहते हैं कि, दशप्रकारका अथवा सब प्रकारका चाहे हजार तरहका प्रकृतिका विकार होनेसेभी मेरी क्या हानि है क्योंकि मैं सब विकारों के संगसे रहित चैतन्यरूप हूँ मुझको कोई विकार स्पर्श नहीं करते जैसे मेघ आकाशको स्पर्श नहीं करता ५१२ अव्यक्तादिस्थूलपर्यन्तमेतद्विश्वं यत्राभासमात्र प्रतीतम् ॥ व्योमप्रख्यं सूक्ष्ममाघन्तहीनं ब्रह्माद्वैतं यत्तदेवाहमस्मि ॥५१३॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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