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________________ भाषाटीकासमेतः । ' ( ११७ ) जीवब्रह्मका एकत्वभावके प्राप्तकरनेवाली चैतन्य मात्रा प्रज्ञा जिसकी सुस्थिर है वह पुरुष स्थितप्रज्ञ कहाता है जिसकी प्रज्ञा सुस्थिर है वही पुरुष निरन्तर आनन्द भोगता है प्रपञ्च जगत् जिसका विस्मृत हुआ बही पुरुष जीवन्मुक्त कहाता है ।। ४२९ ॥ लीनधीरपि जागर्त्ति यो जाग्रद्धर्मवर्जितः । बोधो निर्वासनो यस्य स जीवन्मुक्त इष्यते ४३० अपनी बुद्धिको परब्रह्म में लीन करनेपरभी जो मनुष्य जाग्रत् धर्मसे वर्जित है अर्थात् संसारीक्रियासे रहित है वही पुरुष जागरण करता है । और जिस पुरुषका बोध बाह्य वासना से रहित है वही जीवन्मुक्त है ॥ ४३० ॥ शान्तसंसारकलनः कलावानपि निष्कलः । यस्य चित्तं विनिश्चितं स जीवन्मुक्त इष्यते ४३१ जिसकी संसारवासना शान्त होगई वह पुरुष आत्मकलनायुक्त होनेसे भी निष्कल कहाता है और जिसका चित्त चिन्तासे रहित है वही पुरुष जीवन्मुक्त कहा जाता है ॥ ४३१ ॥ वर्त्तमानेऽपि देहेऽस्मिञ्छायावदनुवर्त्तिनि । अहंताममताभावो जीवन्मुक्तस्य लक्षणम् ||४३२ ॥ प्रारब्धकर्मके अनुसार शरीरके वर्तमान रहते भी जिसका अहंकार और ममता छायाके सदृश है । अर्थात् अपना वशीभूत होकर क्षीणभावको प्राप्त है वही जीवन्मुक्त है ॥ ४३२ ॥ अतीताननुसंधानं भविष्यदविचारणम् । औदासीन्यमपि प्राप्तं जीवन्मुक्तस्य लक्षणम् ४३३ बीती हुई वस्तुओंका फिर अनुभव अर्थात् पश्चात्ताप न करना तथा होनेवाली वस्तुओंका विचार अर्थात् कैसे प्राप्त होगा ऐसी प्रतीक्षा भी नहीं करनी और प्राप्त वस्तुमें उदासीन अर्थात् आसक्त न रहना यह जीवन्मुक्त पुरुषका लक्षण है ॥ ४३३ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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