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________________ भाषाटीकासमेतः। (११५) दृष्ट जो नानाप्रकारके दुःख हैं उन दुःखोंसे चित्तमें उद्वेग न होना यह विद्याका स्वाभाविक फल है अज्ञान दशामें नानाप्रकारका जो निन्दित कर्म किया वह कर्म विवेक होनेपर फिर कैसे करेगा॥४२२॥ विद्याफलं स्यादसतो निवृत्तिः प्रवृत्तिरज्ञानफलं तदीक्षितम् । तज्ज्ञानयोर्यन्मृगतृष्णिकादौ नोचेद्विदां दृष्टफलं किमस्मात् ॥ ४२३ ॥ असत् वस्तुओंकी निवृत्ति होनी यही ज्ञान होनेका फल है। और असत् वस्तुओंकी प्रवृत्ति होना अर्थात् दिखाई देना यही अज्ञानका प्रसिद्ध फल है यह जो भ्रमात्मक ज्ञान तथा यथार्थज्ञान है इन दोनों, ज्ञानीका दृष्ट फल मृगतृष्णकामें विद्वानोंको प्रसिद्ध है । अर्थात् भ्रमात्मक ज्ञान होनेसे मृगतृष्णिकामें असत् जल दिखाई देता है और यथार्थ ज्ञान होनेपर वह असत् जल निवृत्त होजाता है । इससे अधिक दृष्टफल क्या है ॥ ४२३ ॥ अज्ञानहृदयग्रन्थेविनाशो यद्यशेषतः। अनिच्छोर्विषयः किन्तु प्रवृत्तेः कारणं स्वतः४२४ अज्ञानरूप हृदयग्रन्थिका यदि निर्मूल नाश होजावे तो इच्छारहित पुरुषकी स्वतः संसारमें प्रवृत्ति होनेका कौन विषय कारण होगा अर्थात् अज्ञानका नाश होनेपर कोई विषय पुनःप्रवृत्तिमें कारण नहीं होगा ॥ ४२४ ॥ वासनानुदयो भोग्ये वैराग्यस्य तदावधिः । अहंभावो दयाभावो बोधस्य परमावधिः ॥४२५॥ भोग्यवस्तुओंमें वासनाका उदय न होना यही वैराग्यका अवधि है और अहंकारका उदय न होना यह ज्ञान होनेकी परम अवधि है ४२५ ब्रह्माकारतया सदा स्थिततया निर्नुकबाह्यार्थधीरन्यावेदितभोग्यभोगकलनो निद्रालुवद्वा
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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