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________________ भाषाटीकासमेतः। (१०९) जब विकल्पसे रहित परमात्मा सच्चिदानन्द परब्रह्ममें चित्तवृत्ति निश्चल हो जाती है तब कोई बाह्यवस्तुका विकल्प नहीं दीखता केवल प्रजल्पमात्र (अर्थात् वाचारम्भणमात्र ) रह जाता है ॥ ३९९ ॥ असत्कल्पो विकल्पोऽयं विश्वमित्येकवस्तुनि । निर्विकारे निराकारे निर्विशेषे भिदा कुतः॥४०॥ एक वस्तु जो परब्रह्म है उसमें जो विश्वका विकल्प होरहा है सो सब मिथ्या ज्ञान कल्पित है क्योंकि निर्विकार निराकार विशेषसे शून्य परब्रह्ममें भेद नहीं है ॥ ४०० ॥ द्रष्टुर्दर्शनदृश्यादिभावशून्यैकवस्तुनि । निर्विकारे निराकारे निर्विशेषे भिदा कुतः ॥४०१॥ द्रष्टा दर्शन दृश्य इन तीनोंके भावसे शून्य अर्थात् ईश्वरसे भिन्न अलग कोई वस्तु रहे तो उस वस्तुका द्रष्टा ईश्वर होसक्ता है और वह वस्तु दृश्य होगा और तभी ईश्वरमें दर्शन क्रियाका सम्भव होगा यदि ईश्वरसे भिन्न कुछभी नहीं है तो ईश्वर किसका द्रष्टा होगा इसलिये निर्विकार निराकार विशेष शून्य ईश्वरमें कुछ भेद नहीं है ॥ ४०१ ॥ कल्पार्णव इवात्यन्तपरिपूर्णैकवस्तुनि। निर्विकारे निराकारे निर्विशेषे भिदा कुतः ॥४०२॥ प्रलय कालके समुद्र सदृश परिपूर्ण जो एक वस्तु निर्विकार निराकार विशेष शून्य परब्रह्म है उसमें कुछ भेद नहीं है ॥ ४०२ ॥ तेजसीव तमो यत्र प्रलीनं भ्रान्तिकारणम् । अद्वितीये परे तत्त्वे निर्विशेषे भिदा कुतः॥४०३ ॥ जैसे सूर्यके उदय होते यावत् अन्धकार नष्ट हो जाताहै तैसेभ्रमका कारण सम्पूर्ण बाह्य विषय जिस परब्रह्ममें लय होजाताहै उस अद्वितीय विशेष शून्य परब्रह्ममें भेद कहां है ? ॥ ४०३ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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