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________________ भाषाटीकासमेतः। (१०७) क्रियासमभिहारेण यत्र नान्यदिति श्रुतिः । ब्रवीति द्वैतराहित्यं मिथ्याध्यासनिवृत्तये ॥३९३ ॥ मिथ्याज्ञानकी निवृत्ति होनेके लिये बहुतसी अद्वैतपरके श्रुतियां बार बार कहती हैं कि ब्रह्मसे भिन्न दूसरा कुछभी नहीं है केवल नाम मात्रही भिन्न है ॥ ३९३ ॥ आकाशवनिर्मलनिर्विकल्पनिःसीमनिष्पन्दननिर्विकारम् । अन्तर्बहिःशून्यमनन्यमद्वयं स्वयं परं ब्रह्म किमस्ति बोध्यम् ॥ ३९४ ॥ . आकाशके समान निर्मल विकल्प रहित सीमा चेष्टा और विकारसे रहित अन्तर्बहिः शून्य ऐसा अद्वितीय परब्रह्म स्वयं तुम हौ दूसरा बोध्य कुछभी नहीं है ॥ ३९४ ॥ वक्तव्यं किमु विद्यतेऽत्र बहुधा ब्रह्मैव जीवः स्वयं ब्रह्मैतज्जगदाततं नु सकलं ब्रह्माद्वितीयं श्रुतिः । ब्रह्मैवाहमिति प्रबुद्धमतयः संत्यक्तबाह्याः स्फुट ब्रह्मीभूय वसन्ति संततचिदानंदात्मनैतद्भुवम् ३९५॥ बहुतसे वागजाल बढानेसे क्या प्रयोजन है सिद्धान्त यही है कि जीव स्वयं ब्रह्म है और सम्पूर्ण जो जगत विस्तृत हुआ है सो सब ब्रह्म ही है क्यों कि श्रुतिभी कहती है कि ब्रह्म अद्वितीय है और जिनके अंतःकरणमें परम बोध हुआ है वे मनुष्य बाह्य विषयोंको त्याग करके मैं ब्रह्म हूं ऐसी बुद्धिसे ब्रह्मस्वरूप होकर सदा सच्चिदानन्दात्मकरूपसे निश्चल होकर वास करते हैं ॥३९५ ॥ जहि मलमयकोशेऽहंधियोत्थापिताशां प्रसभमनिलकल्पे लिङ्गदेहेऽपि पश्चात् ।
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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