________________
(४०) की आयुष्य स्थिति एक चतुर्थांश पल्योपम से सामान्य अधिक होती है। दूसरी सभा की देवियों की इसके बराबर एक चतुर्थांश पल्योपम की और तीसरी सभी की देवियां एक चतुर्थांश पल्योपम से कम आयुष्य वाली होती हैं । (२४०-२४५) एव च - सामानिका नामेतेषां तथाग्रयोषितामपि।
पर्षदस्तिस्त्र ईषा त्रुटिता दढरथाभिधा ॥२४२॥ सोलह इन्द्रों की जैसे तीन-तीन सभा कही हैं वैसे ही इनके सामानिक देव और अग्रमहिषियों की भी इषा, त्रुटियां और दृढ़रथा नाम की तीन-तीन सभाएं होती हैं । (२४२)
चतुर्भिरेवं सर्वेऽमी सामानिक सहस्रकैः । प्रेयसीभिश्चत सृभिः स्वपरिच्छदचारुभिः ॥२४३॥ पार्षदैस्त्रिविधैर्देवैः सप्तभिः सैन्यनायकैः । । गन्धर्वनट हस्त्यश्वरथ पादात्यकासरैः॥२४४॥ : अमीभिः सप्तभिः सैन्यैश्चतुर्भिश्चात्म रक्षिणां । स्थितैः प्रत्याशं सहस्रैरन्वहं सेवितां ह्रयः ॥२४॥ स्वस्व भौमेय नगर लक्षाणं चक्रवर्तिताम् । असंख्येया नामजस्रं प्रत्येकं विभ्रतोऽद्भुताम् ॥२४६॥ व्यन्तराणां व्यन्तरीणां स्व स्व निकाय जन्मनाम् ।
स्व स्व दिग्वतिनां स्वैरं साम्राज्यमुपभुंजते ॥२४७॥ पंचभिः कुलकम् ॥
इस तरह चार-चार हजार सामानिक देव, हजार-हजार के परिवार वाली चार-चार इन्द्राणी, तीन प्रकार के पर्षदा के देव,सात-सात सेनापति,गंधर्व, नट हस्ती, अश्व, रथ, पैदल तथा महिष रूप सात प्रकार की सैन्य, चारों दिशा में रहे चार-चार हजार आत्म रक्षक, इस प्रकार विशाल परिवार वाले और अपने-अपने लाखों नगरों में अद्भुत् चक्रित्व धारण करने वाले होते हैं । ये सभी इन्द्र अपने-अपने निकाय में उत्पन्न हुए और अपनी-अपनी दिशाओं में रहे असंख्यात व्यन्तर व्यन्तरियों का राज्य भोगते हैं । (२४३ से २४७)
दिव्य स्त्री संप्रयुक्तेषु नाटयेषु व्यापतेन्द्रियाः । - न जानते गतमपि कालं पल्योपमायुषः ॥२४८॥
तथा देवांगनाओं के द्वारा प्रायोजित नाटक में इतने सारे फंसे रहते हैं कि इनका पल्योपम आयुष्य कहां चला जाता है, इसका भी उन्हें ज्ञान नहीं होता । (२४८)