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________________ (३६) जाने से यहां काल आदि व्यन्तरेन्द्रों की इन्द्राणियां हुई है । (२३०-२३४) प्रत्येक मासां साहस्रः परिवारो भवेदथ । एकैकेयं च देवीनां सहस्रं रचितुं क्षमाः ॥२३५॥ इन चौंसठ इन्द्राणियों में से प्रत्येक को हजार-हजार देवियों का परिवार होता है और इनमें हजार-हजार देवियां नयी उत्पन्न करने की सामर्थ्य होती है । (२३५) प्रत्येकमेषामिन्द्राणां चतुःसहस्रसंमिताः । अवरोधे भवत्येवं देव्यो लावण्य बन्धुराः ॥२३६॥ इस गिनती के अनुसार प्रत्येक इन्द्र के अन्तःपुर के अन्दर चार हजार लावण्य - अत्यन्त सुन्दरता वाली देवियां होती हैं । (२३६) प्रत्येकमेषां सर्वेषां तिस्त्रो भवन्ति पर्षदः । ईषा तथा च त्रुटिता सभा दृढरथाभिधा ॥२३७॥ तथा इन प्रत्येक इन्द्र की इषा, त्रुटिता और दृढ़रथ नाम की तीन सभा होती हैं । (२३७) सहस्राण्यष्ट देवानां तत्राभ्यन्तर पर्षदि । मध्यायां दश बाह्यायां द्वादशेति यथा क्रमम् ॥२३८॥ . इसमें अन्दर की सभा में आठ हजार देव होते हैं, मध्य की सभा में दस हजार और बाहर की सभा में बारह हजार देव होते हैं । (२३८) देवीनां शतमेकैकं पर्षत्सु स्यात्तिसृष्वपि । .. देवदेवीनामथात्र स्थितिः क्रमान्निरूप्यते ॥२३६॥ और प्रत्येक सभा में देवियां भी सौ-सौ होती हैं । अब इन तीन सभा के देव-देवियों के आयुष्य की स्थिति क्रमशः कहते हैं । (२३६) पूर्ण पल्योपमस्याधं तद्देशोनं तथाधिकम् । . पल्योपमस्य तुर्यांशो देवानां क्रमशः स्थितिः ॥२४०॥ साधिकः पल्यतुर्यांश पूर्णः स एव च स्थितिः ।। स एव देशेन न्यूनो देवीनां क्रमतः स्मृता ॥२४१॥ प्रथम इषा सभा वाले देवों की अर्द्ध पल्योपम आयुष्य होती है। दूसरी सभा वाले देवों की आधे पल्योपम से कुछ कम होती है और तीसरी सभा वाले देवों की आयुष्य एक चतुर्थांश पल्योपम से कुछ अधिक होती है । प्रथम सभा की देवियों
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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