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(३८) रोहिणी च नवमिका हीनाम्नी पुष्पवत्यपि । प्राणप्रिया इमाः प्रोक्ता जिनैः किं पुरुषेन्द्रयोः ॥२२७॥ भुजगा भुजगवती महाकच्छा स्फुटाभिधा । चतस्रो जीवितेश्वर्यो महोरगाधि राजयोः ॥२२८॥ सुघोषा विमला चैव सुस्वरा च सरस्वती । चतस्त्रः प्राणदयिता गन्धर्वाणमधीशयोः ॥२२६॥
तथा प्रत्येक किंपुरुषेन्द्र को रोहिणी, नवमिका, ह्री और पुष्पवती नाम की चार पट्टरानी हैं। प्रत्येक उरगेन्द्र को भुजगा, भुजगवती, महाकच्छा और स्फुटा नाम की चार इन्द्राणी हैं। प्रत्येक गन्धर्वेन्द्र को सुघोषा, विमला, सुस्वरा और सरस्वती नाम की चार पट्टरानी होती हैं। (२२७-२२६) साम्प्रतीनास्तु - कालादीनां दाक्षिणात्येन्द्राणां याः कमलादयः । .
ता नागपुरवास्तव्या द्वात्रिंशत्पूर्वजन्मनि ॥२३०॥ महाकालायोत्तरात्येन्द्राणां याः कमलादयः । साकेतपुर वास्त व्यास्ता द्वात्रिंशदपि स्मृताः ॥२३१॥ एवं चतुःषष्टिरपि महेभ्यवृद्ध कन्यकाः । स्व स्व नाम प्रतिरूप जननी जनकाभिधाः ॥२३२॥ पुष्प चूलार्यिका शिष्याः श्री पाश्वार्पित संयमाः । शबलीकृत चारित्रा मासार्धानशनस्पृशः ॥२३३॥ अति चाराननालोच्या प्रतिक्रम्य मृतास्ततः । कालादि व्यन्तरेंद्राणां बभूवुः प्राणवल्लभाः ॥२३४॥ पंचभि कुलकम् ।
सोलह इन्द्रों में से दक्षिण भाग के जो काल आदि आठ इन्द्र हैं उनकी कमला आदि बत्तीस इन्द्राणी पूर्व जन्म में नागपुर वासी वृद्ध कन्या (बड़ी उम्र होने पर भी कन्या रही थी) थी और उत्तर दिशा के महाकाल आदि इन्द्र की कमला आदि जो बत्तीस इन्द्राणी हैं वे साकेतपुर वासी वृद्ध कन्या थी । इस तरह समग्र चौंसठ बड़े श्रेष्ठियों की उमर लायक कन्या थीं । इनके माता-पिता के नाम भी इनके अपने नाम के अनुसार ही थे । ये सभी पुष्प चूला नाम की आर्या की शिष्या बनी थीं। इन्होंने श्री पार्श्वनाथ भगवान् के पास में दीक्षा स्वीकार की थी। इनका चारित्र अतिचार वाला था। अर्द्ध मास-पखवार (पंद्रह दिन) का अनशन किया। जब उनकी मृत्यु हुई तब वे अतिचार की आलोचना किए बिना और प्रतिक्रमण रह