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________________ ( ३७ ) पूर्ण भद्रमाणिभद्रौ यक्षाणामाधिपा वुभौ । भीमश्चैव महाभीमो राक्षसानामधीश्वरौ ॥ २१६ ॥ किन्नरश्च किंपुरुषः किन्नराणां महीक्षितौ । इन्द्रौ किंपुरुषाणां च सन्महापुरुषौ स्मृतौ ॥ २२०॥ अतिकाय महाकायौ महोरगधराधिपौ । गन्धर्वाधिपती गीतरतिर्गीतयशा इति ॥ २२१ ॥ इनके नाम इस तरह - पिशाच के इन्द्र काल और महाकाल हैं, भूत जाति के इन्द्र सुरूप और प्रतिरूप हैं, यक्षों के इन्द्र पूर्णभद्र और मणिभद्र हैं, राक्षसों के इन्द्र भीम और महाभीम हैं, किन्नरों के इन्द्र किन्नर और किंपुरुष नाम हैं, किंपुरुष के इन्द्र का सत्पुरुष और महापुरुष नाम है। महोरग जाति के इन्द्र के अतिकाय और महाकाय नाम हैं और गन्धर्वों के इन्द्र गीतरति और गीतयशा नाम के है । (२१८ से २२१ ) सुरेन्द्राः षोडशाप्येते महाबला महाश्रियः । महासौख्या महोत्साहाः स्युरनुत्तरशक्तयः ॥२२२॥ ये सोलह इन्द्र महा बलवान् होते हैं, बहुत समृद्धिशाली, अत्यन्त सुखी, सम्पूर्ण उत्साही और अपूर्व सामर्थ्य वाले होते हैं । (२२२) कमला चैव कमल प्रभोत्पला सुदर्शना । प्रत्येकमेतन्नाम्न्यः स्युः प्रियाः पिशाचराजयोः ॥२२३॥ रूपवती बहुरूपा सुरूपा सुभगापि च । भूताधिराजयोरग्रमहिष्यः कथिता जिनैः ॥२२४॥ पूर्णा बहु पुत्रिका चोत्तमा तथा च तारका । पूर्णभद्र माणिभद्र देवयोर्दयिता इमाः ॥ २२५॥ वसन्तिका केतुमती रतिसेना रतिप्रिया । गदिता दयिता एताः किन्नराणांमधीशयोः ॥२२६॥ और इन सोलह इन्द्रों में प्रत्येक की चार-चार पट्टरानी ( इन्द्राणी) होती हैं। इनमें प्रत्येक पिशाचेन्द्र की कमला, कमलप्रभा, उत्पला और सुदर्शना नाम की चार प्रिया- इन्द्राणी हैं । प्रत्येक भूतेन्द्र की रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा और सुभगा नाम वाली चार प्रिया होती हैं । प्रत्येक यक्षेन्द्र की पूर्णा, बहुपुत्रिका, उत्तमा और तारका नाम वाली चार इन्द्राणी होती हैं । प्रत्येक किन्नरेन्द्र की वसन्तिका, केतुमती, रतिसेना और रतिप्रिया नाम की चार इन्द्राणी होती हैं । (२२३ से २२६)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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