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. (३५) इनमें से जो यक्ष, पिशाच, गंधर्व और महोरग जाति के हैं उनका वर्ण कुछ श्याम होता है, किंपुरुष तथा राक्षस का वर्णश्वेत होता है। किन्नरों का आभास श्याम होने पर भी नील वर्ण वाला होता है और भूत जाति का तो मानो काजलमय हो - इतना श्याम होता है । (२०७-२०८)
कदम्बः सुलसश्चैव बटः खटवांगमेव च । अशोकश्चम्पको नागः तुम्बरूश्च यथाक्रमम् ॥२०॥ भवन्ति चिह्नान्यष्टानां पिशाचादि सुधा भुजाम् । ध्वजेषु तत्र खट्वांगं बिना सर्वेऽपि पादपाः ॥२१०॥ युग्मं । खट्वांगं तूपकरणं तापसानामुदीरितम् । प्रायः क्रीडा विनोदार्थ नरलोके चरन्त्यमी ॥२११॥
इन आठ जाति के व्यन्तरों की ध्वजाओं में अनुक्रम से १- कदम्ब, २सुलस, ३- वड, ४- खट्वांग, ५- अशोक, ६- चंपक, ७- नाग और ८- तुंबरु चिन्ह होते हैं । खट्वांग एक प्रकार का तापस लोक का उपकरण होता है, शेष सात प्रसिद्ध वृक्ष होते हैं । ये व्यंतर देव मनुष्य लोक में प्रायः क्रीड़ा के, विनोद के लिए विचरते रहते हैं । (२०६ से २११) : चैत्यवृक्षास्तथैवैषामष्टानां कमतो मताः ।
'. कदम्बाधास्तथा चोक्तं तृतीयांगे गणाधिपः ॥२१२॥ .. • तथा इन आठ नाम वाले कदम्ब आदि चैत्य वृक्ष भी हैं । इस सम्बन्ध में
तीसरे अंग में गणधर भगवन्त कथित वचन है कि । (२१२) - "एए सिणं अट्ठविहाणं वाणमंतर देवाणं अट्ठ चइत्तरूरत्खा पण्णत्ता। तं जहां ॥" .. अर्थात् - आठ प्रकार के वाण व्यन्तर देवों के आठ चैत्य वृक्ष कहे हैं । वह इस प्रकार कहा है -
कलंबो उ पिसायाणं वडो जख्खाण चेतितं । तुलसी भूयाण भवे रख्खसाणं च कंडओ ॥२१३॥ असोओ किन्नराणं च किंपुरिसाण चंपओ । णागरूख्खो भुअंगाणं गंधव्वाण य तेंदुओ ॥२१४॥ . पिशाचों का कदम्ब वृक्ष होता है, यक्ष का वट वृक्ष, भूत जाति का तुलसी,