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________________ (३४) किं पुरुषा महोरगा गन्धर्वाश्च तथापरे । सर्वेप्येते दाक्षिणात्योदीच्य भेदात् स्मृता द्विधा ॥२०२॥ युग्मं । . इस नगर के अन्दर पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग और गन्धर्व - ये आठ प्रकार के अत्यन्त समृद्धिवान व्यन्तर देव रहते हैं। इनके १- दक्षिण दिशा वाले और २- उत्तर दिशा वाले - इस तरह दो भेद होते हैं। (२०१-२०२) सर्वेऽप्येतेऽति सुभगाः सुरूपाः सौम्य दर्शनाः । हस्तग्रीवादिषु रत्नमय भूषण भूषिताः ॥२०३॥ गान्धर्व गीतरतयः कौतुकाक्षिप्त चेतसः । प्रिय क्रीडा हास्य लास्या अनवस्थित चेतसः ॥२०४॥ . ये अति सुभग, स्वरूपवान देखने में सौम्य होते हैं । हाथ, गले आदि में रत्नमय अलंकारों से विभूषित होते हैं और गान्धर्व गीत गाने में प्रेम वाले होते हैं। इनके कौतुक देखने में बहुत रुचिकर होते हैं और इससे क्रीड़ा, हास्य, नृत्य आदि पर आसक्ति वाले होते हैं । इससे इनका चित्त अनवस्थित - अस्थिर होने से ये घूमते फिरते हैं । (२०३-२०४) विकुर्वित स्फारवनमाला मुकुट कुंडलाः । स्वैरोल्लापाः स्वैररूपधारिणः स्वैरचारिणः ॥२०॥ ये सुन्दर वनमाला, मुकुट, कुंडल आदि उत्पन्न करके धारण करने वाले. इच्छानुसार आलाप-संलाप करने वाले, यथेष्ट रूप करने वाले और स्वेच्छाचारी होते हैं । (२०५) नाना वर्ण वस्त्र नाना देशनेपथ्य धारिणः । मुदगरासिकुन्त शक्ति चापादि व्यग्रपाणयः ॥२०६॥ तथा उन्हें विविध रंग वाले वस्त्रों को धारण करने का शौक होता है. नयेनये देशों के कपड़े पहनने वाले तथा मुदगर, तलवार, कुन्त, शक्ति और बाण आदि शस्त्रों को धारण करने वाले होते हैं । (२०६) तत्र यक्षाः पिशाचाश्च गन्धर्वाश्च महोरगाः । किंचित् कृष्णाः किंपुरुषा राक्षसाश्च सितत्विषः ॥२०७॥ किन्नराःश्याम भासोऽपिकिंचिन्नीलत्विषो मताः। भूताः पुनः कालवर्णाः कज्जलैटिता इव ॥२०॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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