SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३०) रजतं जातरूपं च अंकं स्फटिक संज्ञकम् । रिष्ट कांडं चेत्यमूनि यथार्थाख्यान्यनुक्रमात् ॥१७४॥ खरकांड में हजार-हजार योजन की मोटाई वाले सोलह कांड हैं, इस तरह तत्ववेत्ताओं ने कहा है। वह इस प्रकार - १- रत्न कांड, २- वज्र कांड, ३वैर्य कांड, ४- लोहित कांड,५- मसारगल्ल कांड,६- हंसगर्भ कांड, ७- पुलक कांड,८- सौगन्धिक कांड,६- ज्योति रस कांड, १० - अंजन कांड, ११ -- अंजन पुलक कांड, १२- रजत कांड, १३- सुवर्ण कांड, १४- स्फटिक कांड, १५- अंक कांड और १६- रिष्ट कांड । इस तरह सोलह कांड यथार्थ नाम वाले हैं । (१७११७४) एतेषु तत्तज्जातीय रत्न बाहुल्य योगतः । रत्नप्रभेति गोत्रेण पृथ्वीयं परिकीर्त्यते ॥१७॥ . . . सोलह कांड में उस उस जाति के पुष्कल (बहुत) रत्न होने से उसे पृथ्वी का रत्नप्रभा गोत्र नाम पड़ा है । (१७५) . तिर्यग् लोके भवन्त्यस्या योजनानां शता नव । ऊर्ध्वगाः शेषापिंडस्तु स्यादधोलोक संस्थितः ॥१७॥ इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर का नौ सौ योजन प्रमाण भाग तिर्यग् लोक में है और शेष पिंड अधोलोक में रहता है । (१७६) चतुर्भिश्च किलाधारैर्भूमिरेषा प्रतिष्ठिता । . धनोदधि घन वाततनुवातमस्त्पथैः ॥१७७॥ यह भूमि घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश - इन चार पदार्थों के आधार पर रहती है । (१७७) त्रिभिश्च वलयैरेषा परितः परिवेष्टिता । घनोदधि घनवात तनुवातात्मकैः क्रमात् ॥१७८॥ तथा यह भूमि अनुक्रम से घनोदधि, घनवात और तनुवात - इन तीन प्रकार के तीन वलयाकार से लिप्त है । (१७८) तत्र प्रतिष्ठिता भूमिराधारेण घनोदधेः । महाकटाह विन्यस्तस्त्यानाज्य घनपिंडवत् ॥१७॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy