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रजतं जातरूपं च अंकं स्फटिक संज्ञकम् । रिष्ट कांडं चेत्यमूनि यथार्थाख्यान्यनुक्रमात् ॥१७४॥
खरकांड में हजार-हजार योजन की मोटाई वाले सोलह कांड हैं, इस तरह तत्ववेत्ताओं ने कहा है। वह इस प्रकार - १- रत्न कांड, २- वज्र कांड, ३वैर्य कांड, ४- लोहित कांड,५- मसारगल्ल कांड,६- हंसगर्भ कांड, ७- पुलक कांड,८- सौगन्धिक कांड,६- ज्योति रस कांड, १० - अंजन कांड, ११ -- अंजन पुलक कांड, १२- रजत कांड, १३- सुवर्ण कांड, १४- स्फटिक कांड, १५- अंक कांड और १६- रिष्ट कांड । इस तरह सोलह कांड यथार्थ नाम वाले हैं । (१७११७४)
एतेषु तत्तज्जातीय रत्न बाहुल्य योगतः । रत्नप्रभेति गोत्रेण पृथ्वीयं परिकीर्त्यते ॥१७॥ . . .
सोलह कांड में उस उस जाति के पुष्कल (बहुत) रत्न होने से उसे पृथ्वी का रत्नप्रभा गोत्र नाम पड़ा है । (१७५) .
तिर्यग् लोके भवन्त्यस्या योजनानां शता नव । ऊर्ध्वगाः शेषापिंडस्तु स्यादधोलोक संस्थितः ॥१७॥
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर का नौ सौ योजन प्रमाण भाग तिर्यग् लोक में है और शेष पिंड अधोलोक में रहता है । (१७६)
चतुर्भिश्च किलाधारैर्भूमिरेषा प्रतिष्ठिता । . धनोदधि घन वाततनुवातमस्त्पथैः ॥१७७॥
यह भूमि घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश - इन चार पदार्थों के आधार पर रहती है । (१७७)
त्रिभिश्च वलयैरेषा परितः परिवेष्टिता ।
घनोदधि घनवात तनुवातात्मकैः क्रमात् ॥१७८॥
तथा यह भूमि अनुक्रम से घनोदधि, घनवात और तनुवात - इन तीन प्रकार के तीन वलयाकार से लिप्त है । (१७८)
तत्र प्रतिष्ठिता भूमिराधारेण घनोदधेः । महाकटाह विन्यस्तस्त्यानाज्य घनपिंडवत् ॥१७॥