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________________ (२६) नीचे एक बड़ा छत्र है, इसके ऊपर इससे छोटा, इससे ऊपर और छोटा इस तरह करते सात छत्र एक दूसरे पर रहते हैं - इसी प्रकार से सात नरक भूमि रहती हैं । (१६५) स्यातामायाम विष्कम्भौ सप्तम्याः सप्त रज्जवः । षष्टया षट् पंच पंचम्यास्ताश्चतस्तस्त्रोंजना भुवः ॥ १६६ ॥ रज्जुत्रयं तृतीयाया द्वितीयायास्तु तद् द्वयम् । स्यातामायामविष्कम्भौ रज्जुरेकादिमक्षितेः ॥१६७॥ युग्मं । सातवीं नरक भूमि की लम्बाई-चौड़ाई सात रज्जु प्रमाण है, छठी नरक की छ: रज्जु है, पांचवीं की पांच, चौथी की चार, तीसरी की तीन, दूसरी की दो और पहली की एक रज्जु है । इसी तरह लोक नालिका स्तव में भी कहा है । ( १६६१६७) रत्नप्रभाया बाहल्यं योजनानां प्रकीर्तितम् । एक लक्षं सहस्राणामशीत्या साधिकं किल ॥ १६८ ॥ रत्नप्रभा की मोटाई, जो कि उसकी लम्बाई भी गिनी जाती है - वह एक लाख अस्सी हजार योजन से कुछ अधिक होती है । (१६८) तच्चैवम् - सहस्त्राणि षोडशाद्यं खरकांडं द्वितीयकम् । सहस्राः पकंबहुलं चतुरशीतिरीरितम् ॥१६६॥ तृतीयं जल बहुलं स्यादशीति सहस्रकम् । ततोऽशीति सहस्त्राढ्यं लक्षं पिंडोऽग्रिमक्षितेः ॥१७०॥ वह इस तरह - इसके तीन कांड होते हैं, पहला खरकांड सोलह हजार योजन का हैं, दूसरा पंक बहुल कांड चौरासी हजार योजन का है और तीसरा जल बहुल कांड अस्सी हजार योजन का है। अतः समग्र मिलाकर एक लाख अस्सी हजार योजन प्रथम रत्नप्रभा पृथ्वी का पिंड है । (१६६ - १७०) खरकांडे च कांडानि षोडशोक्तानि तात्विकै : । प्रत्येकमेषां बाहल्यं योजनानां सहस्रकम् ॥ १७१ ॥ तत्रादिमं रत्नकांडं वज्रकांडं द्वितीयकम् । वैडूर्य लोहिताख्यं च मसारगल्ल संज्ञकम् ॥१७२॥ हंसगर्भ च पुलकं सौगन्धिकाभिधं परम् । ज्योतीरसमंजनं चांजन पुलक संज्ञकम् ॥१७३॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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