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________________ (२८) लोक में व्यन्तर मनुष्य, समुद्र, द्वीप और ज्योतिष्क देव आदि रहते हैं तथा ऊर्ध्व लोक में वैमानिक देव और सिद्ध पद प्राप्त करने वाले निवास करते हैं । इस तरह सामान्य रूप में लोक का स्वरूप कहा है । (१५७-१५८) अथ त्रयाणां लोकानां प्रत्येकं तन्निरूप्यते । तत्रादौ कथ्यते किंचिदधोलोको विशेषतः ॥१५६॥ अब तीनों लोकों का अलग-अलग स्वरूप कहते हैं । इसमें प्रथम अधोलोक का कुछ विशेष स्वरूप कहता हूँ । (१५६) .. ... पृथिव्यस्तत्र निर्दिष्टा सप्त सप्तभयापहैः । गोत्रतो नामतश्चैवं गोत्रभित्प्रणतक्रमः ॥१६०॥ . . अधोलोक में सात पृथ्वी कही हैं और इसके सात प्रकार के भय का नाश करने वाले तथा सुरेन्द्र वंदित चरण कमल वाले श्री जिनेश्वर भगवन्त ने गोत्र और नाम दो बात कही हैं । (१६०) आद्या रत्नप्रभा पृथ्वी द्वितीयां शर्करा प्रभा । ततः परा च पृथिवी तृतीया बालुका प्रभा ॥१६१॥ पंकज प्रभा चतुर्थी स्यात् धूमप्रभा च पंचमी । षष्टी तमः प्रभा सप्तमीस्यात्तमस्तमः प्रभा १६२॥ अन्वर्थ जानि सप्तानां गोत्राण्याहुरमूनि वै । रत्लादीनां प्रभा योगात्प्रथितानि तथा तथा ॥१६३॥ प्रथम रत्नप्रभा, दूसरी शर्करा प्रभा, तीसरी बालुका प्रभा, चौथी पंक प्रभा, पांचवीं धूमप्रभा, छठी तमः प्रभा और सातवीं तमःतम प्रभाः- इस तरह सात पृथ्वी के सार्थक गोत्र अनुसार नाम कहे है क्योंकि रत्न, शर्करा, बालुका, धूम और तम आदि की प्रभा के योग से उस उस प्रकार से प्रसिद्ध है । (१६१-१६३) धर्मा वंशा तथा शैलांजनारिष्टा मघा तथा । माघवतीति नामानि निरन्वर्थान्यमूनि यत् ॥१६॥ तथा धर्मा, वंशा, शैला, अंजना, रिष्टा, मघा और मायावती - इनके ऐसे नाम नर्थ बिना हैं । (१६४) अधो महत्तमं छत्रं तस्योपरि ततो लघु । छत्राणा मिति सप्तानां स्थापितानां समा इमाः ॥६५॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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