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________________ (२६) एक दृष्यन्त दिया है । वह दृष्टान्त पांचवे अंग के भगवती सूत्र के ग्यारहवें शतक में इस तरह कहा है। (१४३-१४४) तथाहि- जम्बू द्वीपाभिधे द्वीपे परितो मेरू चूलिकाम् । षट् निर्जराः स्थिताः किंच चतस्रो दिक्कुमारिकाः ॥१४५॥ बलि पिंडान समादाय बाह्याभिमुखतः स्थिताः । जम्बू द्वीपस्य पर्यन्त देशे दिक्षु चतसृषु ॥१४६॥ युग्मं । क्षिपन्ति बलि पिंडास्ताः स्व स्व दिक्षु बहिर्मुखान्। तेषामथैककः कश्चित् षणां मध्यात् सुधाभुजाम् ॥१.४७॥ पृथ्वी पीठमसंप्राप्तान् सर्वानप्याददीत् तान् । जम्बू द्वीपस्य परितो भ्राम्यन् गत्या यया द्रुतम् ॥१४८॥ तया गत्याथ ते देवा लोकान्तस्य दिदृक्षया । आशासु षट्सु युगपत्प्रस्थिताः पथिका इव ॥१४६॥ विशेषकं । जम्बू द्वीप में मेरु पर्वत की चूलिका ऊपर चारों तरफ छ: देव खड़े हैं और जम्बू द्वीप के आखिर में जगती के ऊपर चारों दिशाओं में चार दिक् कुमारियां बलि के पिंड को लेकर लवण समुद्र की तरफ चारों दिशाओं के सन्मुख खड़ी हैं। ये कुमारियां पिंडों को अपनी-अपनी दिशा में बाहर की ओर फेंकती हैं । उस समय उन छहों में से कोई भी एक देव जो अपनी शीघ्र गति से जम्बू द्वीप के आस-पास भ्रमण करते उन पिंडों को पृथ्वी पर गिरने से पहले ग्रहण करे, उसी तरह शीघ्रता वाली गति से वे छहों देव लोकांत देखने को इच्छातुर होकर एक ही साथ छः दिशाओं के मार्ग में जैसे चलने लगे । (१४५-१४६) इतश्च तस्मिन् समये कस्यचिद्वयवहारिणः । पुत्रो वर्ष सहस्त्रायुर्जातोऽसौ वर्धते क्रमात् ॥१५०॥ अब उस समय किसी गृहस्थ के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ, उस पुत्र का आयुष्य एक हजार वर्ष का था। वह पुत्र अनुक्रम से उम्र में बढ़ने लगा । (१५०) क्रमादथास्य पितरौ विपन्नावायुषः क्षयात् । स्वायुः समापयामास ततएषोऽप्यनुक्रमात् ॥१५१॥ कालेन कियता चास्य अस्थिमज्जाः क्षयं गताः। लोकान्तं न च ते देवाः प्रापुः श्रान्ता इवाश्रयम् ॥१५२॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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