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समझना । तत्वतः तीन सौ तेतालीस कहलाता है । (१३६-१३७) तच्चैवम् - आयाम रज्जवः सप्तः सप्तभिर्व्यास रज्जुभिः ।
हता एकोनपंचाशत् भवन्ति घनरज्जवः ॥१३८॥ सप्तभिर्गुणिता एता बाहल्य सप्त रज्जुभिः । .. यथोक्तमानाः पूर्वोक्ता भवन्ति घनरज्जवः ।।१३६॥
वह इस प्रकार से है - इस लोक का घन ७४७ से गुणा करने से उनचास (४६) होता है और उसे सात से गुणा करने से तीन सौ तेतालीस (३४३) घन रज्जु होता है क्योंकि प्रत्येक वस्तु की लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई का गुणाकार घन कहलाता है । (१३८-१३६)
चतुर्गुणत्वे चासां स्यु सर्वाः प्रतररज्जवः । अधिकानि द्विसप्तत्या शतान्येव त्रयोदश ॥१४०॥ आसामपि चतुर्जत्वे भवन्ति सूचि रज्जवः । चतुः पंचाशच्छसानि ह्यष्टाशीत्यधिकानि च ॥१४१॥ चतुर्भिर्गुणने त्वासां खंडुकान्येकविशन्तिः ।। सहस्राणि नवशती द्विपंचशत्समन्विता ॥१४२॥
' इति घनीकृत लोक माननम् ॥
. . इन तीन सौ तैंतालीस घन रज्जु को चार से गुणा करने से तेरह सौ बहत्तर प्रतर रज्जु होता है और इन प्रतर रज्जू को चार से गुणा करने से पांच हजार चार सौ अठासी संख्या होती है । यह इसकी सूची रज्जु होती है, और इसको भी चार से गुणा करने पर इक्कीस हजार नौ सो इक्यावन संख्या होती है । यह इसके खंडुक होते हैं। (१४०-१४२).
असंख्याभियोजनानां कोटा कोटीभिरुन्मितः । नायं लोको गणनया वक्तुं केनापि शक्यते ॥४३॥ ततो दृष्टान्ततः स्पष्टं निर्दिष्टो ज्ञान दृष्टिभिः ।
स चायमुदितः पंचमांगस्यैकादशे शते ॥१४४॥
यह लोक असंख्य कोटा कोटि योजन प्रमाण का होता है । इसकी गणना किसी से भी नहीं हो सकती है । इसलिए ज्ञानियों ने इसके स्पष्ट निर्देश के लिए