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________________ (२३) किंच-ऊर्ध्वलोके त्रसनाडया दक्षिण भागवर्तिनी। द्वे खंडे ये कटीन्यस्तहस्त कूर्पर संस्थिते ॥१२२॥ ब्रह्मलोक मध्यदेशादधस्तनं तथोर्ध्वगम् । ते प्रत्येकं ब्रह्मलोके मध्ये द्विरज्जुविस्तृते ॥१२३॥ किं चिदूनार्धार्धरज्जु त्रयोच्छ्तेि च ते उभे । वसनाडया वामपार्वे वैपरीत्येन कल्पयेत् ॥१२४॥. ततश्च रज्ज्वाततया त्रसनाडया समन्वितम् । यादृक्षमूर्ध्व लोकार्ध जातं तदभिधीयते ॥१२५॥ अंगुल सहस्रांशाभ्यां द्वाभ्यां रज्जुत्रयं युतम् । विष्कम्भतः किंचदूना रज्जवः सप्त चोच्छ्रयात् ॥१२६॥ बाहल्यतो ब्रह्मलोक मध्ये तंत् पंच रज्जुकम् । अन्य स्थले त्वनियत बाहल्यमिदमास्थितम ॥१२७॥ और ऊर्ध्व लोक के विषय में त्रस नाड़ी के दक्षिण भाग में कटि न्यस्त हस्त की कोहनी पर दो खंड होते हैं । एक ब्रह्मलोक के मध्य प्रदेश से ऊपर और दूसरा इससे नीचे । इन दोनों में प्रत्येक ब्रह्मलोक के मध्य में दो रज्जु चौड़ा है और साढ़े तीन रज्जु ऊँचा है । इन दोनों के विपरीत रूप में त्रस नाड़ी के बांये ओर कल्पना करना । अत: रज्जु प्रमाण त्रस नाड़ी से समन्वित ऊर्ध्व लोकार्ध की चौड़ाई तीन रज्जु और दो सहस्रांश अंगुल है, ऊँचाई लगभग सात रज्जु है तथा मोटाई ब्रह्मलोक के मध्य में पांच रज्जु है और अन्य स्थान पर कम या अधिक अनियमित रूप होता है। इस तरह प्रमाण आता है । (१२२-१२७) तदेततदुपरितनं गृहीत्वार्धं निवेशयेत् । ... अधस्तनं संवर्तितलोकार्धस्योत्तरांतिके ॥१२८॥ अब इस ऊर्ध्व लोकार्ध को लेकर उलटा करने से नीचे के लोकार्ध के उत्तर भाग के पास में स्थापना करना । (१२८) एवं संयोजने चोधोलोक खंडोच्छ्येऽस्ति यत् । अतिरिक्तमुपरितनात्तत्खंडित्वाभिगृह्य च ॥१२६॥ ऊर्ध्व लोकार्थ बाहल्य पूत्र्यै चोर्ध्वायतं न्यसेत् । एवमस्य सातिरेका बाहल्यं पंच रज्जवः ॥१३०॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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