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संख्या आती है इतने सूची रज्जु होते हैं, इनमें से अट्ठाईस सौ आठ अधो लोक में और एक हजार सोलह ऊर्ध्व लोक में हैं । (११४-११५)
इस तरह वर्गित लोकमान समझना । (सूची रज्जु को चार गुणा करते १५२६६, खंडुक दोनों लोक के मिलकर होते हैं। उनमें से ११२३२ अधो लोक के और ४०६४ ऊर्ध्व लोक के होते हैं।)
घनीकृतो भवेल्लोकः सप्तरज्जुमितोऽभितः । विष्कम्भायाम बाहल्यैः सद् बुद्धयैवं विधीयते ॥११६॥ ....
अब घन लोकमान के विषय में कहते हैं। विष्कम्भ, आयाम और बाहल्य अर्थात् लम्बाई, चौड़ाई तथा मोटाई - इस तरह सर्वतः इस लोक का सात रज्जु प्रमाण है । यह घन बुद्धिमानों को नीचे कहे अनुसार समझना चाहिए । (११६)
एक रज्जु विस्तृतायास्त्रसनाडयास्तु दक्षिणाम् । .. .. अधो लोक वर्ति खंडमूनरज्जु त्रयांततम् ॥११७॥: .... सर्वाधस्तात् हीयमान विस्तारत्वादुपर्यथ । रज्ज्वसंख्येय भागोरू सप्तरज्जूच्छ्रयं च तत् ॥११८॥ गृहीत्वोत्तर दिग्भागे त्रसनाडयाः प्रकल्प्यते । ... विरचय्याधस्तनांशमुपर्युपरिगं त्वधः ॥११६॥ ततोऽधस्तन लोका) किंचिदून चतुष्टयम् । रज्जू नामा ततं सातिरेकं सप्तकमुच्छ्रितम् ॥१२०॥ क्वचित्किचिदनसप्तरज्जु बाहल्यमप्यधः । अपरत्रत्वनियतं बाहल्यमिदमास्थितम् ॥१२१॥
एक रज्जु चौड़ी त्रस नाड़ी के दक्षिण में अधो लोक में अन्दर रहा खण्ड लगभग तीन रज्जु चौड़ा होता है, क्योंकि नीचे से ऊपर जाते चौड़ाई दोनों तरफ बढ़ती गई है । उसकी ऊँचाई सात रज्जु और ऊपर रज्जु का असंख्यातवां भाग है । इस खंड को लेकर त्रस नाड़ी के उत्तर दिग भाग में जोड़ देना । इसमें नीचे के भाग के ऊपर और ऊपर के भाग के नीचे कल्पना करना । इस तरह करने से लोक के नीचे आधे भाग का विस्तार लगभग चार रज्जु और ऊँचाई सात रज्जु से कुछ ही अधिक होती है । यद्यपि नीचे का विस्तार कही लगभग सात रज्जु के समान भी है परन्तु अन्यत्र तो वह अनियमित है । (११७-१२१)