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(२१) .. तथा प्रतर रज्जु अधोलोक में बत्तीस और ऊर्ध्वलोक में उन्नीस - इस तरह दोनों को मिला कर इक्यावन होती है । (१०८)
अधोष्टावूर्ध्वलोके च निर्दिष्टा घनरज्जवः । पादोना पंच सर्वाग्रे स्युः पादोनास्त्रयोदशः ॥१०॥
इदं दृष्टलोक माननम् ॥ और घनरज्जु अधो लोक में आठ और ऊर्ध्व लोक में पौने पांच मिलाकर कुल पौने तेरह होते हैं । (१०६)
इस तरह दृष्ट लोक मान कहा । • वर्गितस्य च लोकस्याधोलोके घन रज्जवः । सार्धया पंच सप्तत्याधिकमेकं शतं मतम् ॥११०॥ ऊर्ध्व लोके.भवेत्सार्धा त्रिषष्टिः सर्वसंख्यया । ध्रुवमेकोनया चत्वारिंशताढ्यं शतद्वयम् ॥१११॥
अब वर्गित लोकमान के विषय में कहते हैं । इस लोकमान का वर्ग अधोलोक में एक सौ साढ़े पचहत्तर और ऊर्ध्वलोक में साढ़े तरेसठ मिलाकर कुल दो सौ उन्तालीस घनरज्जु कहा है । (११०-१११) - आसां चतुर्गुणत्वे च सर्वाः प्रतर रज्जवः ।
शतानि नव षट् पंचाशता युक्तानि तत्र च ॥११२॥ : ‘शतानि सप्तद्वयधिकान्यधोलोके प्रकीर्तिताः । . .. ऊर्ध्वलोके द्वे शते च चतुः पंचाशताधिके ॥११३॥ - इस तरह चार गुना करने से सर्व मिलाकर प्रतर रज्जु नौ सौ छप्पन होते हैं तथा अधो लोक में सात सौ दो और ऊर्ध्व लोक में दो सौ चौवन की संख्या होती है। (११२-११३)
चर्तुगुणत्वे चैतासां भवन्ति सचिरज्जवः । चर्तुविंशत्युपेतानि त्वष्टात्रिंशच्छतानि वै ॥१४॥ तत्रापि - अधोलोके शतान्यष्टाविंशतिः स्फुटमष्ट च । ऊर्ध्व लोके पुनस्तासां सहस्त्रं षोडशाधिकम् ॥११५॥
इति वर्गित लोकमानम् ॥ और इन नौ सौ छप्पन को चार गुना करने से तीन हजार आठ सौ चौबीस