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(२०) देखें तंब चौड़ाई पांच रज्जु होती है और वहां से ऊँचे जाने पर इसी तरह से घटता जाता है और अन्त में एक रज्जु रह जाता है । (१०२) किं च- रज्जु मानात् द्वितीयस्मात् क्षुल्लक प्रतराच्चितिः ।
अधोमुखी च तिर्यक् चांगुलासंख्यांश भागिका १०३॥ और रज्जु प्रमाण अन्य क्षुल्लक प्रतर से अधोमुखी तिरछी वृद्धि अंगुल के असंख्य भाग के समान होती है । (१०३)
एवं चाधोलोकमूले पृथुत्वं सप्तरज्जवः । .
अथात्र सूचीरज्जवादि मानं किंचिन्निगद्यते ॥१०४॥ . . .
इस तरह बढ़ते हुए अधोलोक के मूल के पास में चौड़ाई सात रज्जु होती है। अब यहां सूची रज्जु आदि के माप के विषय में कुछ कहते हैं । (१०४) :
"इदं च संग्रहणी वृत्यनुसारेण ॥ लोकनाडी स्तवे तु प्रदेश वृद्धि. हानीदश्यते लोकतिर्यग्वृद्धौ ॥"
यह संग्रहणी की टीका अनुसार से कहा जाता है 'लोकनाड़ी स्तव में तो लोक की तिरछी वृद्धि में ही प्रदेश की वृद्धि-हानि कही है।' .
चतुर्भिः खड्कैः सूचीरज्जः श्रेण्या व्यवस्थितैः। ताभिश्चतुर्भि प्रतररज्जुः षोडश खंडुका. ॥१०५॥ चतसृभिश्च प्रतर रज्जुभिर्जायते किल । घनरज्जुश्चतुः षष्टिः खंडुकाः सर्वतः समाः ॥१०६॥
श्रेणिबद्ध रहे चार खंडुक का एक सूची रज्जु होता है और चार सूची रज्जु का सोलह खंडुक प्रमाण एक प्रतर रज्जु होता है । चार प्रतर रज्जु का एक घनरज्जु होता है अर्थात् एक घनरज्जु में चारों तरफ से समान- चौखंडे चौसठ खंडुक होते हैं । (१०५-१०६)
अष्टाविंशं शतमध उर्ध्वं षट्सप्ततिर्मता । सर्वाश्चतुर्भिरधिके द्वे शते सूचिरज्जवः ॥१०७॥
नीचे अधोलोक में एक सौ अट्ठाईस और ऊपर ऊर्ध्व लोक में छिहतर, इस तरह दोनों मिलकर सूची रज्जु की संख्या दो सौ चार है । (१०७)
दन्तैर्मिता अधोलोके ऊर्ध्वमेकोनविंशतिः । एक पंचाशदाख्याताः सर्वाः प्रतर रज्जवः ॥१०८॥