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यो मुल तोऽपि राशिः स्याच्चतु स्त्रिद्वयेक रूपकः। सोऽपि ज्ञेयः कृत युग्मत्र्योजादि नाम धेयभाक् ॥७६स॥
श्री भगवती सूत्र में श्री गौतम के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने इसी तरह ही कहा है । और जो संख्या मूल से ही चार, तीन, दो अथवा एक हो वह भी अनुक्रम से कृत युग्म, त्र्योज, द्वापर युग्म और कल्पोज कहलाती है।
"तदुक्तं भगवती वृत्तौः त्रिभिरादित एवं कृतयुग्माद्वोपोरिर्वातभिराजो विषम राशि विशेषस्त्र्योज इति । द्वाभ्यामादित एव कृतयुग्माद्वोपरिवर्तिभ्यां यदपरं युग्मादन्यन्नामनिपातन विधिर्वापर युग्मम् । कल्पेन एकेन आदितः एव
कृतयुग्माद्वोपरिवर्तिना ओजः विषम राशि विशेषः कल्पोज इति ॥" ......'यह बात श्री भगवती सूत्र की टीका में भी कही है कि - मूल से ही तीन
की राशि हो अथवा कृतयुग्म में भाग करने पर तीन का अंक बढ़ जाय और वह राशि रूप ओज हो, वह त्र्योज कहलाता है । मूल से ही दो संख्या शेष रहे अथवा कृतयुग्म में भाग करने पर शेषं दो रहता हो, वह युग्म अथवा द्वापरयुग्म कहलाता है । यदि मूल से ही एक की राशि हो अथवा कृतयुग्म' में भाग करने पर एक की संख्या बढ़ जाय और वह विषम राशि वाला ओज़ हो, वह कल्पोज कहलाता है।' - "कर्मप्रकृतिवृत्तौतुएतेषां निरुक्तिः एवंदृश्यते॥इह कश्चिद्विवक्षितः राशिस्थाप्यते।तस्य कलि द्वापरत्रेता कृतयुग संज्ञैःचतुर्भिः भागः ह्रियते।भागे चहते सति यदिएकःशेषो भवति तर्हि सराशिः कल्पोजः उच्यते यथात्रयोदश। अथ द्वौ शेषौ तर्हि द्वापरयुग्मः यथा चतुर्दश।अथ त्रयः शेषाः ततः त्रेतौजः यथा पंचदश । यदा तु न किंचिदवतिष्टते किन्तु सर्वात्माना निर्लेपः एव भवति तदा स कृतयुगः यथा षोडशेत्यादि ॥" - "कर्म प्रकृति की वृत्ति में तो इस विषय की इस तरह से निरुक्ति दिखती · है - किसी अमुक राशि की कल्पना करना और उसे कलि, द्वापर, त्रेता और कृतयुग नाम की राशि लेने के लिए चार अंक से भाग देना । भाग देने के बाद यदि एक शेष रहे तो वह कल्पोज कहलाता है जैसे कि तेरह, यदि दो शेष रहे तो वह द्वापरयुग्म कहलाता है जैसे कि - चौदह, यदि तीन शेष रहे तो वह त्रेतौज कहलाता है, जैसे कि पंद्रह । परन्तु यदि शेष कुछ न रहे तो वह कृतयुग कहलाता है जैसे कि सोलह इत्यादि ।"