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________________ (१४) प्रत्येकमासां सर्वासां दिशां सर्वे प्रदेशकाः । कृतयुग्मांमताः सन्ति सिद्धान्त परिभाषया ॥७६॥ इन सब दिशाओं के प्रत्येक के सर्व प्रदेश सिद्धान्त की परिभाषा में कृतयुग्म' नाम होते हैं । (७६) तदुक्तमाचारांगनियुक्तौ ।सव्वा यहवंति कडजुम्मे त्ति।कृतयुग्मादि स्वरूपं चैवम्। श्री आचारांग सूत्र की नियुक्ति में भी इन सब बातों की साक्षी देते हैं । 'कृतयुग्म' आदि का स्वरूप कहते हैं । वह इस प्रकार :- ... चतुष्केणह्रियमाणश्चतुः शेषो हि यो भवेत् । . . . ‘अभावात् भागशेषस्य स ख्यातः कृतयुग्मकः ॥७६॥ • किसी भी संख्या को चार से भाग देने पर चार बढ़ते हैं, वह संख्या भाग शेष के अभाव से कृतयुग्म कहलाती है । दृष्यन्त रूप में सोलह है । (७६अ) तदुक्तं भगवती १८ शतकस्य चतुर्थोद्देशक वृत्तौ - "कृतं सिद्धं पूर्ण ततः परस्य राशि संज्ञान्तरस्या भावेन न तु ओजःप्रभृतिवत् अपूर्णं यत् युग्मं सम राशि विशेषः तत् कृतयुग्मम् इति ॥" इस सम्बन्ध में भगवती सूत्र के अट्ठारहवें शतक, चौथे उद्देश में कहा है कि - ‘कृत अर्थात् सिद्ध अथवा पूर्ण (क्योंकि उसके बाद अन्य राशि संज्ञा का अभाव है) परन्तु ओज आदि के समान अपूर्ण नहीं है, ऐसा जो युग्म अर्थात् तुल्य राशि विशेष है वह 'कृत युग्म' कहलाता है।" चतुष्केण ह्रियमाणस्त्रिशेषस्त्र्योज उच्यते । द्विशेषो द्वापरयुग्मः कल्पोजश्चैकशेषकः ॥७६ब॥ यदि चार से भाग दिया जाय और तीन शेष रहे तो वह 'त्र्योज' कहलाता है (जैसे कि पंद्रह) तथा यदि चार से भाग देने पर दो शेष रहे तो वह द्वापर युग्म कहलाता है (जैसे कि चौदह) और यदि चार से भाग देने पर एक शेष रहे तो वह कल्पोज कहलाता है (जैसे कि तेरह) । (७६ब) तथा च भगवती सूत्रे - "गोयम! जेणं रासी चउक्क गेणं अवहारेणं अवहीरमाणे अवहीरमाणे चउ पज्झवसिए सेणं कडजुम्मे । एवं ति पज्जवसिए तेउए ।दु पज्जवसिए दावरजुम्मे । एग पज्जवसिए कलि ओगे । इति ।"
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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