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________________ (१३) तत्समश्रेणिकैस्तावन्मितैर्जाता प्रदेशकैः । ऊर्ध्वलोकालोकगता विमलादिगुदीरिता ॥७०॥ इस तरह से सम श्रेणिक चार प्रदेश द्वारा उत्पन्न होकर विमला दिशा ऊँचे लोक और अलोक में भी व्याप रही है । (७०) रूचकस्याधस्तनं यत्प्रदेशानां चतुष्टयम् । तत्तमाया दिशः प्रोक्तं जिनैरादितया श्रुते ॥१॥ तथा रूचक के नीचे के जो चार आकाश प्रदेश हैं उन्हें जिनेश्वरों ने 'तमा' दिशा का प्रारंभ कहा है । (७१). तन्मूला विमला तुल्या किन्त्वधोगामिनी तमा । तदिमे रूचकाकारे चतुः प्रदेश विस्तृते ॥७२॥ विमला दिशा का जो मूल है वही इस तमा दिशा का भी मूल है । विमला फर्ध्वगामी है तथा तमा अधोगामिनी है, इतना दोनों में अन्तर है । दोनों का एक समान चक समान ही आकार है और दोनों समान चार आकाश प्रदेश के विस्तार वाली ।। (७२) .. . - द्वयोयोर्दिशेरन्तश्छिन्नमुक्तावली समाः । ..... एक प्रदेशा विदशो लोकालोकान्तसीमया ॥७३॥ दो-दो दिशाओं के बीच अलग-अलग रही मालामुक्ता के समान एक प्रदेशी वदिशाएं हैं और वह लोक और अलोक की सीमा पर्यंत पहुँचती हैं । (७३) दिशः स्युद्धिप्रदेशाढ्या द्वयुत्तरा रूचकोद्भवाः।। ... 'विदिशोऽनुत्तरी एक प्रदेशा रूचकोद्भवाः।।७४॥ रूचक से निकली हुई दिशाएं दो प्रदेश से दो-दो प्रदेश बढ़ते विस्तार वाली है। विदिशाए भी रूचक से उत्पन्न हुई हैं, फिर भी केवल एक प्रदेश के विस्तार वाली ही हैं । (७४) दिशोऽप्येता असंख्येय प्रदेशा लोक सीमया । अलोकापेक्षया सर्वाः स्युरनन्त प्रदेशिकाः ॥७५॥ - लोक सीमा की अपेक्षा से दस दिशायें असंख्यात प्रदेश के विस्तार में हैं और अलोक की अपेक्षां से अनन्त प्रदेश के विस्तार में हैं । (७५)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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