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.. (६) .. दो प्रतर में से ऊपर के प्रतर में गाय के स्तनों के समान चार आकाश प्रदेश रहे हैं, वैसे ही नीचे के प्रतर में भी चार प्रदेश रहे हैं । इस तरह नीचे-ऊपर रहे इन आठ आकाश प्रदेशों का ज्ञानी पुरुषों ने 'चौरस रूचक' नाम से परिचय दिया है। (४३-४४) । ... तस्मान्न वशतान्यूर्ध्वमधो नवशतानि च ।
एतावान् मध्य लोकः स्यादा कृत्या झल्लरीनिभः ॥४५॥
वहां से नौ सौ योजन ऊर्ध्व और नौ सौ योजन नीचे-इतना मध्य लोक होता है और वह झालर के आकार में रहता है । (४५)
योजनानां नव शतान्यतीत्य रूचकादितः।
आंलोकांतमधोलोकस्तप्राकृतिरूदाहृतः ॥४६॥
रूचक से नीचे नौ सौ योजन छोड़ने के बाद लोक के अन्त तक का जो भाग है वह अधोलोक है और वह कुंभ के आकार वाला है । (४६) . गत्वा नवशतान्येव रूचकाद्योजनान्यथ । ..... उर्वीकृत मृदंगाभ ऊर्ध्वलोकः प्रकीर्तितः ॥४७॥
रूचक से ऊपर नौ सौ योजन छोड़ने के बाद का जो भाग है वह ऊर्ध्व लोक है और इसका खड़े किए मृदंग के समान आकार होता है । (४७) ..सातिरेक सप्त रज्जु मानोऽधोलोक इष्यते ।
ऊर्ध्वलोकः किचिदून सप्त रज्जु मितः स्मृतः ॥४८॥
अधोलोक प्रमाण में सात रज्जु से कुछ अधिक है और ऊर्ध्व लोक सात रज्जु से कुछ कम है । (४८)
धर्माधनोदधि धनतनु वातान् विहायसः । असंख्य भागं चातीत्य मध्यं लोकस्य कीर्तितम् ॥४६॥ अस्मादूर्ध्वमधश्चैव संपूर्णा सप्त रज्जवः ।
अथ त्रयाणां लोकानां प्रत्येकं मध्यमुच्यते ॥५०॥ . धर्मा धनोदधि, धनवात, तनुवात और आकाश के असंख्यातवें भाग छोड़ने के बाद लोक का मध्य भाग कहा है । इससे ऊपर के भाग में सम्पूर्ण सात रज्जु है और नीचे के भाग में भी इतने ही अर्थात् सम्पूर्ण रज्जु प्रमाण है । अब तीन लोक के प्रत्येक के मध्य भाग कहते हैं । (४६-५०)