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________________ (५१४) सप्तदशैक विंशतितमैः नक्षत्रैः नभोमध्यं प्राप्तैः यथाक्रमं प्रथमादि प्रहरान्तः स्यात् इति संप्रदायः ॥" शीतकाल (ठंडी) में दिन से रात्रि बड़ी होती है, इससे सूर्य नक्षत्र से ग्यारहवां, चौदहवां, सत्रहवां और इक्कीसवां नक्षत्र जब आकाश के मध्य में आता है, तब रात्रि का अनुक्रम से पहला, दूसरा, तीसरा अथवा चौथा पहर पूर्ण हुआ है, इस तरह समझना। लोके च : और लोकोक्ति तो इस तरह है :अभिजिदादीना तारासंख्या आकारः रात्रि संख्या मासक्रमश्च : १. अभिजित ३ गोशीर्षावली श्रावण ७ २. श्रवण ३ कासार ३. धनिष्ठा ५ पक्षिपंजर . . भाद्रपद १/१४ ४. शतमिषक् १०० पुष्पमाला ५. पूर्वाभाद्रपदा २ अर्द्धवापी ६. उत्तराभाद्रपदा २ अर्द्धवापी अश्विन १/१४ ७. रेवती ३२ नौका संस्थान १५ ८. अश्विनी ३ अश्वस्कंध कार्तिक १/१४ ६. भरणी ३ भगसंस्थान . १५. १०. कृतिका ६ क्षुरधारा मृगशीर्ष १/१४ ११. रोहिणी ५ शकटोद्धी १५ १२. मृगशीर्ष ३ मृगशीर्ष १३. आर्द्रा १ रूधिरबिन्दु १४. पुनर्वसू .५ तुला १५. पुष्य ३ वर्द्धमानक • माह १/१४ १६. अश्लेषा ५पताका १७. मघा ७ प्राकार फाल्गुन १/१४ १८. पूर्वा फाल्गुन २ अर्द्धपल्यंक १६. उत्तराफाल्गुन २ अर्द्धपल्यपंक चैत्र १/१४ पोष १/१४
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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