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________________ (५१५) १५ - रात्रि संख्या मासक्रमश्च १५ १५ वैशाख १/१४ १५ ज्येष्ट १/१४ अभिजिदादीना २०. हस्त २१. चित्रा २२. खाति . २३. विशाखा २४. अनुराधा २५. ज्येष्ठा २६. मूल २७. पूर्वाषाढा २८. उत्तराषाढा तारासंख्या आकारः ५ हस्त तल १ मुखमंडल सुवर्ण पुष्प १ कीलक ५ पशुदामन ४- एकावली ३ गजदंत ११ वृश्चिक पुच्छि ४ गजविक्रम (पाद) ४ सिंहनीपदन आषाढ १/१४ १५ १५ श्रावण १/१४ रविरिख्खाओ गणियं रिसरिखं जाव सत्तपरिहीणम । - सेसं दुगुणं किच्चा तीया राई फुडा हवइ ॥७०२॥ इत्यादि बहुधा ॥ इत्याहोरात्र समापक नक्षत्र कीर्तनम् ॥१५॥ .. सूर्य नक्षत्र से सिर नक्षत्र तक जितने नक्षत्र होते हैं, उसमें से सात निकाल दो और शेष रहे, उसे दोगुना करो, इस तरह जो संख्या आए, उतने रात्रि के पहर पूरे हुए है ऐसा समझना । (७०२) इस तरह और भी अनेक रीति है। ... 'इस प्रकार प्रत्येक मास में सम्पूर्ण करने वाले नक्षत्रों का कथन कहा । समाप्तं चेदं नक्षत्र प्रकरणम् ॥ विकालकोऽङ्गारकश्च लोहितांकः शनैश्चरः ।। आधुनिकः प्राधुनिकः कणः कणक एव च ॥७०३॥ नवमः कण कणकः तथा कण वितानकः । कण सन्तानकश्चैव सोमः सहित एव च ॥७०४॥ अश्वसेनः तथा कार्योपगः कर्वरकोऽपि च । तथाजकरको दुन्दुभकः शंखाभिधः परः ॥७०५॥ शंखनाभस्तथा शंखवर्णाभः कंस एव च । कंसनाभस्तथा कंसवर्णाभो नील एव च ॥७०६॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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