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________________ (५११) फिर बाद के पंद्रह पूर्ण होने तक पौष्य-रेवती हो, और अन्तिम तीसवां अहोरात अश्विनी पूर्ण होती है । (६८५) अश्विन्येव कार्तिकस्य नयत्याद्यांश्चतुर्दश । अहोरात्रान् पंचदश भरण्येक च कृत्तिकाः ॥८६॥ कार्तिक महीने में पहले चौदह अहोरात्रि पूर्ण होने तक अश्विनी हो, फिर पंद्रह अहोरात्रि भरणी हो, और अन्तिम एक अहोरात कृतिका आकर पूर्ण करता है । (६८६) समापयन्ति ता एव सहस्याद्याश्चतुर्दश । ब्राह्मी पंचदशान्त्यं च मृगशीर्ष समापयेत् ॥६८७॥ मृगशीर्ष मास में पहले चौदह अहोरात पूर्ण होने तक कृतिका हो, बाद के पंद्रह दिन पूर्ण होते तक ब्राह्मी हो, और अन्तिम एक दिन रात मृगशीर पूर्ण करता है । (६८७) पौषस्यापि तदेवाद्यानहोरात्रान् समापयेत् । चतुर्दश तथा ीष्टौ ततः सप्त पुनर्वसू ॥६८८॥ पौस महिने के पहले चौदह अटेरात्रि मृगशीर्ष पूर्ण करे, उसके बाद आठ . आर्द्रापूर्ण करे, फिर सात दिन रात पुनर्वसू पूर्ण करे, और अन्तिम तीसवां अहोरात . पुष्य करता है । (६८८) · पुष्योऽस्यान्त्यमहोरात्रं माघेऽप्याद्यांश्चातुर्दशः । समापयेत् पंचदशाश्लेषा तथान्तिमं मघाः ॥६८६॥ माघ महीने के पहले चौदह अहोरात पुष्य पूरा करते है, फिर के पंद्रह दिन रात अश्लेषा में पूर्ण करते हैं, और फिर अन्तिम एक दिनरात मघा पूर्ण करते हैं । (६८६) पूरयन्ति फाल्गुनस्य मघाः आद्यांश्चतुर्दश । ततः पंचदश पूर्वाफाल्गुनी सोत्तरान्तिमम् ॥६६०॥ ‘फाल्गुन के पहले चौदह दिन, रात मघा नक्षत्र में होते है, फिर पंद्रह पूर्वाफाल्गुन नक्षत्र में होते है, और अन्तिम दिन उत्तराफाल्गुन में होता है । (६६०) उत्तरा फाल्गुनी चैत्रे नयत्याद्यांश्चतुर्दश । ततो हस्तः पंचदश चित्राहोरात्रमन्तिमम् ॥६६१॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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