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________________ (५१०) तरह से अन्य स्थान पर भी कहा है । इस प्रकार अमावस्या व पूर्णिमा के योग सम्बन्ध में कहा (१४) यदा यदा यैर्नक्षत्रैरस्तं यातैः समाप्यते । अहो रात्रः तानि वक्ष्ये नामग्राहं यथाक्रमम् ॥६८०॥ प्रत्येक महीने में अहोरात्रि सम्पूर्ण करने वाले नक्षत्र कहते हैं :- एक वर्ष के प्रत्येक महीने में कौन-कौन नक्षत्र कितने-कितने अहोरात्रि तक होते हैं, वह अनुक्रम से नामयुक्त कहते हैं । (६८०) . .. तदा समाप्यते ऋक्षैः रात्रिप्येभिरे वयत् । .. उच्यते रात्रि नक्षत्राण्यमून्येव तद्बुधैः ॥६८१॥ ये नक्षत्र अमुक अहोरात्रि की समाप्ति तक होते हैं, उनके द्वारा रात्रि समाप्त होती है, इस कारण उनको रात्रि के नक्षत्र भी कहते है । (६८१) समापयति तत्राद्यानहोरात्रांश्चश्चतुर्दश । . . नभोमास्युत्तराषाढा सप्तैतान् अभिजित् तदा ॥६८२॥ ततः श्रवण मप्यष्टावेकोनत्रिंशदित्य भूत् । धनिष्टा श्रावण स्यान्त्यमहोरात्रं ततो नयेत् ॥६८३॥ श्रावण महीने में पहले चौदह अहोरात्रि सम्पूर्ण होने तक उत्तराषाढा होता है उसके बाद सात अहोरात्रि सम्पूर्ण होत तक अभिजित नक्षत्र होता है । उसके बाद आठ अहोरात्रि सम्पूर्ण होते श्रवण नक्षत्र होता है अन्तिम तीसवां अहोरात धनिष्ठा पूर्ण करता है । (६८२-६८३) नयेत् धनिष्टाहोरात्रान् भाद्रस्याद्यांश्चतुर्दश । ततः शतभिषक् सप्त पूर्वाभद्रपदाष्ट च ॥६८४॥ भाद्रपद मास में पहले चौदह अहोरात्रि सम्पूर्ण होने तक धनिष्ठा होती है, फिर सात सम्पूर्ण होते तक, शततारा होता है उसके बाद आठ तक पूर्वाभाद्रपदा होते हैं, और अन्तिम अहोरात को उत्तराभाद्रपदा सम्पूर्ण करता है । (६८४) . सौत्तरान्त्यमहोरात्रं सैवेषस्य चतुर्दश । ततः पौष्णं पंचदश चरमं चैकमश्विनी ॥६८५॥ आसोज महीने में पहली चौदह अहोरात्री पूर्ण होने तक उत्तराभाद्रपदा हो,
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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