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________________ (४६०) मंडलों को चन्द्र मंडलों में उतारना । पहला नक्षत्र मंडल पहले चन्द्र मंडल में है, दूसरा नक्षत्र मंडल तीसरे चन्द्र मंडल में है, तीसरा नक्षत्र मंडल लवण समुद्रगत छठे चन्द्र मंडल में है, इस तरह चौथा सातवें में, पांचवा आठवें में, छठा दसवें में, सातवां ग्यारहवें में और आठवां नक्षत्र मंडल पंद्रहवें चन्द्र मंडल में है । शेष सात चन्द्र मंडल सर्वदा नक्षत्र बिना के ही है । इन में कोई नक्षत्र नहीं है । (५४७ से ५५१) एषां चन्द्र मण्डलानां परिक्षेपानुसारतः । पूर्वोक्त विधिना भानां मुहूर्त गतिराप्यते ॥५५२॥ ... इति चन्द्र मण्डलावेश ॥७॥ .. इस तरह उस-उस मंडल में नक्षत्रों की मुहूर्त गति उपर्युक्त उन-उन चन्द्र मंडलों के घेराव के आधार पर पूर्वोक्त रीति अनुसार गुणाकर भागकार करने से आयेगा । (५५२) चन्द्र मंडलावेश पूर्ण हुआ । (७) अभिजिच्छ्रवणश्चैव धनिष्टा शततारिका । पूर्वोत्तरा भाद्रपदा रेवती 'पुनरश्विनी ॥५५३॥ भरणी फाल्गुनी पूर्वा फाल्गुन्येव तथोत्तम् । स्वातिश्च द्वादशैतानि सर्वाभ्यन्तर मण्डले ॥५५४॥ चरन्ति तन्मण्डलार्धं यथोक्त कालमानतः । पूरयन्ति तदन्या) तथा तान्यपराण्यपि ॥५५५॥ दिशाओं के साथ में योग विषय कहते हैं - नक्षत्रों के आठ मण्डलों में से सर्वाभ्यन्तर मंडल में १- अभिजित् २- श्रवण, ३- धनिष्ठा, ४- शततारा, ५- पूर्वा भाद्रपदा, ६- रेवती, ८- अश्विनी, - भरणी, १०- पूर्वाफाल्गनी ११- उत्तरा फाल्गुनी और १२- स्वाति, ये बारह नक्षत्र आये हैं । ये पूर्वोक्त समय में इस मंडल के अर्ध भाग में गमन करते हैं, और इसके दूसरे अर्ध में दूसरे वहीं नाम के नक्षत्र पूर्ण करते हैं । (५५३ से ५५५) पुनर्वसूमघाश्चेति द्वयं द्वितीयमण्डले । तृतीयें कृत्तिकास्तूर्ये चित्रा तथा च रोहिणी ॥५५६॥ विशाखा पंचमे षष्टेऽनुराधा सप्तमे पुनः । ज्येष्टाष्टमे त्वष्ट भानि सदा चरन्ति तद्यथा ॥५५७॥ आर्द्रा मृगशिरः पुष्योऽश्लेषा मूलं करोऽपि च । . पूर्वाषाढोत्तराषाढे इत्यष्टान्तिममण्डले ॥५५८॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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