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सर्वाभ्यन्तर के बाद के दूसरे मण्डल में हमेशा पुनर्वसु और मघा तीसरे में कृतिका, चौथे में चित्रा, और रोहिणी, पांचवे में विशाखा, छठे में अनुराधा, सातवें में ज्येष्ठा और आठवें में १ आर्द्रा, २- मृगशिर, ३-पुष्प, ४- अश्लेषा ५- मूल, ६- हस्त, ७- पूर्वाषाढा और ८- उत्तराषाढा । ये आठ नक्षत्र गमन करते हैं । (५५६-५५८)
पूर्वोत्तराषाढयोः तु चतुस्तारक योरिह ।
द्वे द्वे. स्तः तारके बहिश्चाष्टममण्डलात् ॥५५६॥
पूर्वाषाढा और उत्तराषाढा नक्षत्र के चार तारा होते हैं । उसमें दो-दो तारा आठवें मंडल के अंदर हैं, और दो-दो तारा बाहर हैं ।
अष्टानां द्वादशनां च बाह्यभ्यन्तर चारिणाम् ।
सर्वेभ्योऽपि बहिः मूलं सर्वेभ्यो ऽप्यन्तरेऽभिजित् ॥५६०॥ . सर्व से बाहर के मंडल में गमन करने वाले आठ नक्षत्र है, और सर्व से अभ्यन्तर मंडल में गमन करने वाले बारह नक्षत्रों में से मूल नक्षत्र सबसे बाहर हैं और अभिजित् सर्व से अन्दर है । (५६०) - "तथा :- अह भरणि साइ उवरि बहि मूलोभिंतरे अमिई ॥"
.: 'अन्यत्र कहा है कि - भरणी नक्षत्र नीचे है, स्वाती ऊपर है, मूल बाहर है, और अभिजित् अंदर है।' . . यानि द्वादश ऋक्षाणि सर्वाभ्यन्तर मण्डले ।
• तानि चन्द्रस्योत्तरस्यां संयुज्यन्तेऽमुना समम् ॥५६१॥ - एभिः यदोडुभिः सार्धं योगः तदा स्वभावतः ।
शेषेष्वेव मण्डलेषु भवेच्चारो हिमद्युतेः ॥५६२॥
सर्वाभ्यन्तर मंडल में जो बारह नक्षत्र है, उनका चन्द्रमा के साथ में योग है चन्द्र के उत्तर में होता है, और वह योग होता है, तब चन्द्रमा का फिरना स्वभाव होने से शेष मंडलों में ही होता है । (५६१-५६२)
सर्वान्तर्मण्डलस्थानामेषामुत्तरवर्तिता । . चन्द्रात् युक्ता तदेभ्यश्च विधोदक्षिणवर्तिता ॥५६३॥ ... वे जब सर्वाभ्यन्तर मंडल में होते हैं, तब वे दूर से उत्तर दिशा में होते हैं, और चन्द्र उनसे दक्षिण दिशा में हो वह युक्त होता है । (५६३)