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________________ (४७६) उत्तम वस्त्र आभूषण वाला, पुष्प माला से सौन्दर्य वाला तथा मह समृद्धि से युक्त इस राहु के सम्पूर्ण अवयव होते हैं, परन्तु लोगों में प्रसिद्ध है, इस केवल मस्तक रूप ही नहीं है । (४५८) किंच - विधो रेकैक मयन महो रात्रा स्त्रयोदश । चतुश्चत्वारिंशदहोरात्रांशाः सप्तषष्टिजाः ॥४५६॥ द्वाभ्यां चन्द्रायणाभ्यां स्यात् भमासः सप्त विंशतिः। अहो रात्राः सप्तषष्टि भागाः तत्रैक विंशति ॥४६०॥ . और १३ ४४/६७ अहो रात का एक चन्द्रायण होता है, और दो चन्द्रायण का एक नक्षत्र मास होता है । अतः एक नक्षत्र मास के २७ २१/६७ अहोरात होते हैं। (४५६-४६०) अत्रोपत्तिस्त्वेवम् :सर्वोडूनां चन्द्र भोगो वक्ष्यमाणंः समुच्चितः । मुहूर्ताना शतान्यष्टकोनविंशान्यथो लवा ॥४६१॥ स्युः सप्तविंशतिः सप्तषष्टिजास्त्रिंशता,ततः । मुहूर्तों के हृते लब्धाहोरात्र सप्तविंशतिः ॥४६२॥ मुहूर्ता नव शिष्यन्ते भागाश्च सप्तविंशतिः । मुहूर्ताः सप्तषष्टिनाः कार्याः कर्तुं सवर्णनम् ॥४६३॥ षट्शती व्युत्तरां स्यात् सा सप्तविंशति भागयुक् । बभूव षट्शती त्रिंशा भागोऽस्यास्त्रिंशता पुनः ॥४६४॥ सप्तषष्टि भवा भागा लभ्यन्ते एकविंशतिः । यथोक्तोऽयं भ भासोऽस्यार्धाधु याम्योत्तरायणे ॥४६५॥ इसकी जानकारी इस तरह है - सर्व नक्षत्रों का चन्द्र साथ का भोग एकत्रित करे तो ८१६२७/६७ मुहूर्त का होता है । इस संख्या का तीस से विभाग करे तो २७ अहो-रात आते हैं । और ६२७/६७ शेष रहता है । उसे समान करने के लिए नौ को सड़सठ से गुणा करते ६x६७ = ६०३ होते हैं, उसमें सत्ताईस मिलाने से ६०३+२७ = ६३० होते है, उसे तीस से भाग देने पर २१ आते हैं, वह इसका एक चन्द्रमास होता है, और दूसरे अर्ध-अर्ध भाग का चन्द्र का एक दक्षिणायण और उत्तरायण होता है । (४६१ से ४६५) |
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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