________________
(४७५)
.
सूर्य चन्द्र के नीचे जाते-आते राहु जब उनकी लेश्या तेज को आच्छादित करता है, तब लोग कहते हैं कि उनको अंधकार-राहु ने पकड़कर रखा है । यह जब उनकी लेश्या-प्रकाश को ढकता उनके पास से पास से चला जाता है, तब लोग कहते हैं कि - सूर्य या चन्द्रर्मा ने राहु की कुक्षि को भेदन की है । जब राहु इसी तरह से उनकी लेश्या प्रकाश का आवरण कर हट जाता है, तब लोग कहते हैं कि राहु ने सूर्य-चन्द्र का वमन किया है । (४४६ से ४५२)
यदा तु गच्छन् वागच्छन् राहुश्चन्द्रस्य वा रवः । लेश्यामावृत्य मध्येन गच्छत्याहुर्जनास्तदा ॥४५३॥ राहुणा रविरिन्दुर्वा विभिन्न इति चेत्पुनः । सर्वात्मना चन्द्र सूर्य लेश्यामावृतय तिष्ठति ॥४५४॥ वावदन्तीह मनुजाः परमार्थाविदस्तथा । राहुणा क्षुधितेनेव ग्रस्तश्चन्द्रोऽथवारविः ॥४५५।।
त्रिभिर्विशेषकम् ॥ राहु जब-जब इन दोनों के मध्य में से जाता है तब कहते हैं, कि राहु ने इनको भेदन किया है । जब राहु सूर्य को अथवा चन्द्रमा को सर्व प्रकार से आच्छादित करता है, तब भी सत्य स्वरूप से अज्ञान लोग यह कहते हैं कि मानो क्षुधातुर हो, ऐसे राहु ने सूर्य या चन्द्र को ग्रस लिया है । (४५३-४५४)
श्रृंगारश्च जटिलः क्षत्रक: खरकस्तथा । दुर्धरः सगरो. मत्स्यः कृष्ण सर्पश्च कच्छपः ॥४५६॥ इत्यस्य नव नामानि विमानास्त्वस्य पंचधा । . कृष्ण नील रक्त पीत शुक्ल वर्ण मनोहराः ॥४५७॥ युग्मं ।
.... इति भगवती सूत्र शतक १२ षष्टोदेशके ॥
इस राहु के नौ नाम हैं - १- श्रृंगारक, 2- जटिल, ३- क्षत्रक, ४- खरक, ५- दुर्धर, ६-सगर, ७- मत्स्य, ८- कृष्ण सर्प और ६- कच्छप । तथा इसके १श्याम, २- नील, ३- रक्त, ४- पीत (पीला) और ५- श्वेत इस तरह पांच वर्ण वाले मनोहर विमान है । (४५६-४५७) इस तरह से श्री भगवती सूत्र में शतक १२ उद्देश छ: में कहां है। · सम्पूर्ण सर्वावयवो विशिष्टालंकार माल्याम्बर रम्य रूपः ।
महर्द्धि राजति राहुरेषुः लोक प्रसिद्धो नतु मौलिमात्रः ॥४५८॥