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________________ (४७३) . प्रमाणमपि विमानं संभाव्यते । अन्ये पुनः राहुः लघीयसोऽपि राहु विमानस्य महता तमिस्रजालेन तदा वियते । इति भगवती सूत्र वृत्तौ १२ शतके पंचमोद्देशके । तत्वं तु केवलिनो विदन्ति ॥" "इस विषय में भगवती सूत्र की टीका में भी उल्लेख मिलता है, कि ग्रह के विमान का प्रमाण आधा योजन कहा है, वह प्रायः कर समझना । और इससे राहु ग्रह के विमान का प्रमाण अधिक भी हो सकता है । कई इस तरह कहते हैं कि - राहु का विमान छोटा है, परन्तु इसके अन्धकार का समूह अधिक है, इसलिए चन्द्र मंडल आच्छादित हो जाता है । इस प्रकार से श्री भगवती सूत्र की टीका के बारहवें शतक के पांचवे उद्देश में कहा है। तत्व तो केवली भगवन्त जाने।" कदाचित् ग्रहण इव विमानमुपलभ्यते । वृत्ताकृति ध्रुवराहोः कदाचित् न तथा चाकिम् ॥४४०॥ यहां प्रश्न करते हैं कि ग्रहण समय के समान किसी समय में ध्रुव राह का विमान गोलकार दिखता है । और किसी समय में ऐसा नहीं दिखता उसका क्या कारण है ? (४४०) दिनेषु येषु तमसाभिभृत स्यात् भृशं शशी । तेषूपलभ्यते वृत्तं विमानमस्य येषु च ॥४४१॥ शशी. विशुद्ध कान्तित्वान् तमसा नाभिभूयते । वृत्तं विमानं नैतस्य दिनेषु तेषु दृश्यते ॥४४२॥ युग्मं ॥ इसका उत्तर देते हैं - जिस दिन में चन्द्र का राह से अत्यन्त परभव होता हो उस दिन मैं उसं राहु का विमान गोलाकार दिखता है, परन्तुं जब चन्द्रमा तेजस्वी कान्ति वाला हो, तब राहु उसका पराभव नहीं कर सकता, और इससे उसका विमान गोलाकार नहीं दिखता । (४४१-४४२) तथोक्तम् - वट्टच्छेओ कइवइ दिवसे धुव राहुणो विमाणस्स। दिसइ परं न दिसइ जह गहणे पव्व राहुस्स ॥४४३॥ उच्चच्छं न हि तमसाभिभूयं तेजं ससी विसुज्झन्तो । तेण न वदृच्छेओ गहणे उ तमो तमो बहुलो ॥४४४॥ इति भगवती वृत्तौ ॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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