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आच्छादित नहीं कर सकता है । यह बात स्पष्ट रूप में समझ आती है । (४३३४३४)
एवमुत्तरयन्त्यत्र केचित् प्राक्तनतपण्डिताः । लघीयसोऽप्यस्य कान्ति जालैरत्यन्तमेचकैः ॥४३५॥ आच्छाछते महदपि शशि बिम्बं प्रसृत्वरैः । दावानलोच्छलद्धूमस्तोमैरिव नमोऽङ्गणम् ॥४२६॥
इसका समाधान करते हैं, कि कई प्राचीन विद्वानों का इस तरह कहना है कि - राहु का विमान यद्यपि छोटा है फिर भी इसके अत्यन्त श्याम रंग के विशाल कान्ति के समूह से वह बड़ा भी चन्द्र बिम्ब ढक जाता है । जैसे दावानल से उठा हुआ धुएं का समूह आकाश मंडल को ढक जाता है । उसी तरह यह चन्द्र भी ढक जाता है. । (४३५-४३६)
अन्ये त्वभिदधुः धीराः योजनार्धं यदुच्यते । . . मानं ग्रहविमानस्य तदेतत्प्रायिकं ततः ॥४३७॥ ... योजनायाम विष्कम्भं तंत् द्वात्रिंशांशमेदुरम् । स्वर्भानुमण्डलं तेन विधुरावियतेसुखम् ॥४३८॥
कई विद्वानवर्य इस तरह कहते हैं, कि ग्रह के विमान का प्रमाण अर्ध योजन- आधा योजन कहा है, वहां प्रायः आधा योजन समझना । राहु का विमान तो एक योजन लम्बा-चौड़ा और बत्तीस विभाग स्रद्दश मोटा समझना । इससे वह चन्द्र के बिम्ब को सुखपूर्वक ढक सकता है । (४३७-४३८)
तथा चाहु :आयामो विखंभे जो अणमेगं तु तिगुणिओ परिही। अड्ढाइज्जधणुसया राहुस्स विमाणवाहल्लम् ॥४३६॥ संगहण्यादर्श प्रक्षेपगाथेयं दृश्यते ॥
संग्रहणी की प्रति में यह ४३८वीं प्रक्षेप गाथा दिखती है, उसमें कहा है कि 'राहु के विमान की लम्बाई-चौड़ाई एक योजन की है, इससे तीन गुणा इसकी परिधि है, और अढाई सौ धनुष्य प्रमाण इसकी मोटाई है । (४३६) ___"भगवती वृत्तावपि एतस्याश्चालनाया एवं प्रत्यवस्थानम् । यदिदं ग्रह विमानमर्ध योजन प्रमाणमिति तत् प्रायिकम् । ततश्च राहोः ग्रहस्य उक्ताधि