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तथाहु :कालेण जेण हायइ सोलसभागो तु सा तिही होइ। तहचेव य वुडीए एवं तिहिणो समुप्पती ॥४२८॥
कहा है कि - जितने समय में चन्द्रमा का सोलहवां भाग कम होता है, उतने समय में यह बढ़े, उतने काल अनुसार एक तिथि होती है । इस प्रकार तिथि की उत्पत्ति होती है । (४२८)
एकोनत्रिंशता पूर्णैः मुहूत्तैश्च द्विषष्टिजैः । द्वात्रिंशता मुहूर्ताशैरेकै को रजनीपतेः ॥४२६॥ चतुर्धा षष्टयंशरूपो राहुणा छाद्यते लवः । मुच्यते च तदैतावन्मानाः स्यु तिथयोऽखिलाः ॥४३०॥ युग्मं ॥ एवं च- द्वाषष्टि भक्ताहोरात्रस्यैकषष्टया लवैर्मिता ।
तिथिरे वं वक्ष्यते यत्तद्युक्तमुपपद्यते ॥४३१।। राहु चंद्रमा का उपरोक्त चार विभाग जितना अंश २६ ३२/६२ मुहूर्त पर्यन्त आवरण अथवा खुले- (आवरण रहित) रहता है, अतः सर्व तिथियों का इसी तरह समझना । और इसी तरह एक अहोरात के.६१/६२ सद्दश तिथि कहलाती है । वह युक्त ही है । (४२६ से ४३१) .
तिथिमानेऽस्मिश्च हते त्रिंशत स्याद्यथोदितः । - मासश्चान्द्र एवमपि त्रिंशत्तिथिमितः खलु ॥४३२॥ .
तिथि के इसी अनुसार तीस से गिनने से तीस तिथियाँ का एक चन्द्रमास होता है । (कहलाता है)। ... 'ननु राहु विमानेन योजनार्धमितेन वै ।
षट् पंचाशद्योजनैकषष्टिभागमितं खलु ॥४३३॥ कथमाच्छादितुं शक्यं गरीयः शशिमण्डलम् ।
लघीयसा गरीयो हि दुरावारमिति स्फुटम् ॥४३४॥ .. यहां कोई शंका करता है कि - आधा योजन सद्दश ही राहु विमान है, वह ५६/६१ योजन प्रमाण का है, अर्थात् अपने से लगभग दो गुणा बड़ा है, तो फिर चन्द्रमा का विमान किस तरह आच्छादित कर सकता है ? छोटी वस्तु से बड़ी वस्तु