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पहला, तीसरा, ग्यारहवां और पन्द्रहवां इन चार मण्डलों में सूर्य चन्द्र तथा नक्षत्र सभी सामान्य हैं । क्योंकि इन चार में सूर्य चन्द्रमा तथा नक्षत्र, राजमार्ग पर सब लोग जैसे गमनागमन करते हैं । वैसे गमन करते हैं । (४०७)
षष्ठादीनि पंच सूर्य चार हीनानि सर्वथा ।
शेषाणि मण्डलानीन्दोः किंचित् भानुः स्पृशेदपि ॥४०८॥ . छठा, सातवां, आठवां, नौवां और दसवां इन पांच चन्द्रं मंडल में सूर्य का जरा भी गमना गमन नहीं होता, शेष मंडलों में सूर्य का क्वचित् आवागमन होता है। (४०८)
साधारणासाधारण मण्डलान्ये वमूचिरे । सम्प्रतीन्दोः वृद्धिहानिप्रतिभासः प्ररुप्यते ॥४०n .
इतना चन्द्रमा का साधारण असाधारण मंडल विषय विवेचन किया । अब चन्द्र की वृद्धि और हानि के प्रतिभास विषय में कहते हैं । (४०६)
अवस्थितस्वभावं हि स्वरूपेणेन्दुमण्डलम् ।
सदापि हानिः वृद्धिः वा प्रेक्ष्यते सा न तात्विकी ॥४१०॥ - ऐसे तो स्वरूप से चन्द्रमा हमेशा अवस्थित स्वभाव वाला ही है। इसकी हानि वृद्धि दिखती है, वह वास्तविक हानि वृद्धि नहीं है । (४१०)
केवलं या शुक्ल पक्षे वृद्धिानिस्तथापरे । राहु विमानावरणयोगात् सा प्रतिभासते ॥४११॥
इनकी शुक्ल पक्ष में वृद्धि और कृष्ण पक्ष में हानि दिखती है, वह केवल राहु के विमान के आवरण के योग से दिखता है । (४११) तथाहु - ध्रुवराहुः पर्वराहुः एवं राहुः द्विधा भवेत् ।
ध्रुवराहोस्तत्र कृष्णतमं विमानमीरितम् ॥४१२॥ तच्च चन्द्र विमानस्य प्रतिष्ठितमधस्तले । चतुरंगुलमप्राप्तं चारं चरति सर्वदा ॥४१३॥ तेनापावृत्य चावृत्य चरत्यधः शनैः शनैः । वृद्धिहानिप्रतिभासः पोस्फुरीतोन्दुमण्डले ॥४१४॥
इस राहु के विषय में यह कहा है कि - राहु दो प्रकार का है, १- पर्व राहु और २- नित्य राहु का विमान बहुत श्याम है, और वह विमान चन्द्रमा के विमान